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________________ चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाहिवइस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ तंजहा - पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा । चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाहिवइस्स पढमाए कच्छाए चउसट्ठि देवसहस्सा पण्णत्ता । जावइया पढमा कच्छा तब्बिगुणा दोच्चा कच्छा, तब्बिगुणा तच्चा कच्छा एवं जाव जावइया छट्ठा कच्छा । तब्बिगुणा सत्तमाः कच्छा । एवं बलिस्स वि वरं महद्दुमे सट्ठि देव साहस्सिओ, सेसं तं चेव, धरणस्स एवं चेव णवरं अट्ठावीसं देवसहस्सा, सेसं तं चेव, जहा धरणस्स एवं जाव महाघोसस्स, णवरं पायत्ताणियावइणो अण्णे ते पुव्वभणिया । सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ तंजहा - पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुयस्स, णाणत्तं पायत्ताणियाहिवइणो अण्णे ते पुव्वभणिया, देवपरिमाणमिणं सक्कस्स चउरासीइं देवसहस्सा, ईसाणस्स असीइ देवसहस्साइं । देवा इमाए गाहाए अणुगंतव्वा Jain Education International स्थान ७ चउरासीइ असीइ, बावत्तरि सत्तरी य सट्ठी य । . पण्णा चत्तालीसा तीसा, बीसा दससहस्सा ॥ १ ॥ जाव अच्चुयस्स लहुपरक्कमस्स दस देवसहस्सा, जाव जावइया छट्ठा कच्छा तब्बिगुणा सत्तमा कच्छा ॥ ७८ ॥ कठिन शब्दार्थं - कच्छाओ कक्षाएं-समूह, चउसट्ठि देवसहस्सा - चौसठ हजार देव, तब्बिगुणा - उससे दुगुने अण्णे अन्य, पुव्वभणिया- पहले कहे हुए, देवपरिमाणं देवों का परिमाण, पायत्ताणिय- पदात्यनीक ( पदाति + अनीक = पदात्यनीक) पदाति अनीक पैदल सेना । भावार्थ - असुरकुमारों के राजा, असुरकुमारों के इन्द्र चमरेन्द्र के पदाति अनीक के अधिपति द्रुम के सात कक्षाएं यानी समूह कहे गये हैं यथा- पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवां, छट्ठा और सातवां समूह । असुरकुमारों के राजा, असुरकुमारों के इन्द्र चमरेन्द्र के पदाति अनीक के अधिपति द्रुम के पहले समूह में चौसठ हजार देव कहे गये हैं। पहले समूह में जितने देव हैं दूसरे समूह में उनसे दुगुने देव हैं. यानी दूसरे समूह में एक लाख अट्ठाईस हजार देव हैं। तीसरे समूह में उनसे दुगुने हैं यानी दो लाख छप्पन हज़ार देव हैं । इस तरह आगे के समूह में पहले समूह से दुगुने दुगुने देव हैं यावत् छठे समूह में जितने देव हैं उनसे दुगुने सातवें समूह में हैं। इसी प्रकार बलीन्द्र के पदाति अनीक के अधिपति महाद्रुम के पहले समूह में साठ हजार देव हैं इससे आगे आगे के समूहों में दुगुने दुगुने देव हैं । धरणेन्द्र के - - १९५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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