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________________ श्री स्थानांग सूत्र 'कठिन शब्दार्थ- करणयाए करने में, वेएमि वेदन करता हूँ, छिंदित्तए छेदन करने में, भिंदितए - भेदन करने में समोदहित्तए - जलाने में, लोगंता लोक के अन्त में, कम्मग सरीरी कार्मण शरीर वाले । १०८ भावार्थ - छद्मस्थ पुरुष छह बातों को सर्वभाव से यानी सब पर्यायों सहित न जान सकता है और न देख सकता है। यथा धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर रहित जीव, परमाणु पुद्गल और शब्द वर्गणा के पुद्गल इनको छद्मस्थ सर्वभाव से जान नहीं सकता और देख नहीं सकता है। किन्तु केवलज्ञान केवल दर्शन के धारक राग द्वेष को जीतने वाले अरिहन्त भगवान् इन धर्मास्तिकाय से लेकर शब्द वर्गणा के पुद्गल तक उपरोक्त छह ही पदार्थों को सर्वभाव से जान सकते हैं और देख सकते हैं । - छह बोल करने में किसी भी जीव की ऋद्धि, दयुति, यश, बल, पुरुषकार और पराक्रम नहीं है । यथा - जीव को अजीव बनाने में कोई समर्थ नहीं है । अजीव को जीव करने में कोई समर्थ नहीं हैं । एक समय में कोई दो भाषा बोलने में समर्थ नहीं है । किये हुए कर्मों का फल अपनी इच्छानुसार भोगने में अथवा न भोगने में कोई स्वतन्त्र नहीं है क्योंकि जैसे कर्म किये हैं वैसा फल जीव को अवश्य भोगना ही पड़ता है । परमाणु पुद्गल को छेदन भेदन करने में एवं जलाने में कोई समर्थ नहीं है और लोक के बाहर जाने में कोई समर्थ नहीं है । छह जीव निकाय कहा गया । यथा वनस्पति कायिक और त्रसकायिक । छह ग्रह • अंगारक यानी मंगल, शनिश्चर और केतु । - - Jain Education International पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेउकायिक, वायुकायिक, तारा रूप कहे गये हैं। यथा शुक्र, बुध, वृहस्पति, छह प्रकार के संसार समापन्नक यानी संसारी जीव कहे गये हैं । यथा पृथ्वीकायिक, अकाबिक, तेठकाबिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक। पृथ्वीकायिक जीव छह गति वाले और छह आगति वाले कहे गये हैं। यथा- पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने वाला पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकाबा से लेकर 'सकाया तक छह ही कायों से आकर उत्पन्न हो सकता है । इसी तरह पृथ्वीकाया को छोड़ने वाला पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाया से लेकर त्रसकाया तक छह ही कायों के जीवों में जाकर उत्पन्न हो सकता है। इसी तरह अप्कायिक, तेठकायिक, वायुकायिक वनस्पतिकायिक और कायिक सभी जीवों में उपरोक्त छह ही कायों की गति और छह ही कार्यों की आगति होती है । सब जीव छह प्रकार के कहे गये हैं । यथा - आभिनिबोधिकज्ञानी- मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी मन:पर्ययज्ञानी केवलज्ञानी और अज्ञानी । अथवा दूसरी तरह से सब जीव छह प्रकार के - * ग्रह नौ कहे गये हैं और लोक में भी नौ ग्रह प्रसिद्ध हैं किन्तु चन्द्रमा, सूर्य और राहू ये तीन ग्रह तारा के आकार वाले नहीं है। इसलिये यहाँ पर इन तीनों को छोड़ कर बाकी छह ग्रह जो तारा के आकार हैं वे लिये गये हैं। For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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