________________
स्थान ५ उद्देशक ३ 600000000000000000000000000000000000000000000000000
पंच संवत्सर पंच संवच्छरा पण्णत्ता तंजहा - णक्खत्तसंवच्छरे, जुगसंवच्छरे, पमाणसंवच्छरे, लक्खणसंवच्छरे, सणिंचरसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तंजहा - चंदे चंदे अभिवतिए चंदे अभिवड्डिए चेव । पमाणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तंजहा - णक्खत्ते चंदे उऊ आइच्चे अभिवड्डिए । लक्खण संवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तंजहा -
समगं णक्खत्ता जोगं जोयंति, समगं उऊ परिणमंति । णच्चुण्हं णाइसीओ बहूदओ होइ णक्खत्ते ॥ १ ॥ ससि सगल पुण्णमासी जोएइ विसमचार णक्खत्ते । कडुओ बहूदओ तमाहु संवच्छरं चंदं ॥ २ ॥. विसमं पवालिणो परिणमंति अणुऊसु देति पुष्फफलं । वासं 'ण सम्मं वासइ, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥ ३ ॥ पुढविदगाणं उ रसं पुण्फफलाणं उ देइ आइच्चो । अप्पेण वि वासेण सम्मं णिप्फज्जए सस्सं ॥ ४ ॥ आइच्च तेय तविया खण लव दिवसा उऊ परिणमंति ।
पूरिति. रेणुथ नयाई तमाहु अभिवड्डियं जाण ॥ ५ ॥ ३६॥ कठिन शब्दार्थ - कल मसूर तिल मुग्ग मास णिप्फाव कुलत्थ आलिसंदग सईण पलिमंथगाणं - गोल चने, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, वाल, कुलत्थ, चौला, तूअर और काले चने, इन सबका कुहाउत्ताणं - कोठे में बंद किये हुओं का, जोणी - योनि, संवच्छराई - संवत्सर-वर्ष, पमिलाइ - म्लान, वोच्छिण्णे - विच्छेद, जुग संवच्छरे - युग संवत्सर, पमाण संवच्छरे - प्रमाण संवत्सर, लक्खण संवच्छरे - लक्षण संवत्सर, सणिंचर संवच्छरे - शनिश्चर संवत्सर, अभिवडिए - अभिवर्धित, उऊ - ऋतु, अइसीओ - अधिक सर्दी, बहूदओ - अधिक पानी, सगल - सकल-सारी, विसमचार - विषमचारी, कडुओ - कटुक-सर्दी और गर्मी दोनों अधिक, पवालिणो - प्रवाल, पत्र
आदि वाले वृक्ष, विसमं - असमय में, अणुऊसु - बिना ऋतु के, तेय- तेज, तविया - तप्त हो कर, रेणुथलयाई - धूल से स्थल, पुरिति - भर जाते हैं । . .
भावार्थ - संसारी जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा - एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय। एकेन्द्रिय जीवों की पांच गति और पांच आगति कही गई है। यथाएकेन्द्रियों में उत्पन्न होने वाला एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियों से लेकर पञ्चेन्द्रियों तक के जीवों में से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org