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________________ स्थान २ उद्देशक १ कठिन शब्दार्थ - धम्मे - धर्म, सुयधम्मे - श्रुतधर्म, चरित्तधम्मे - चारित्रधर्म, अगारचरित्तधम्मेअगार-गृहस्थ चारित्र धर्म, अणगारचरित्तधम्मे - अनगार चारित्र धर्म, सुहम संपराय सराग संजमेसूक्ष्म संपराय सराग संयम, बायरसंपराय सराग संजमे - बादर संपराय सराग संयम, संकिलेसमाणएसंक्लिश्यमान, विसुझमाणए - विशुद्ध्यमान, उवसंत कसाय वीयराग संजमे - उपशांत कषाय वीतराग संयम, सयंबुद्ध छउमत्थ खीणकसाय वीयराग संजमे - स्वयंबुद्ध छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग संयम, बुद्धबोहियछउमत्थ खीणकसाय वीयराग संजमे - बुद्धबोधित छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग संयम, चरम समय सजोगी केवली खीणकसाय वीयराग संजमे - चरम समय सयोगी केवली क्षीण कषाय वीतराग संयम, अपढम समय अजोगी केवलि खीण कसाय वीयराग संजमे - अप्रथम समय अयोगी केवली क्षीण कषाय वीतराग संयम। भावार्थ - दुर्गति में जाते हुए जीवों की दुर्गति से रक्षा करके सुगति में पहुंचावे वह धर्म कहलाता है, वह धर्म दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि श्रुतधर्म यानी द्वादशाङ्गी रूप सिद्धान्त और चारित्रधर्म - पालन किया जाने वाला व्रतादि रूप। श्रुतधर्म दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि सूत्र रूप श्रुतधर्म और अर्थरूप श्रुतधर्म। चारित्र धर्म दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि सम्यक्त्व सहित बारह व्रतों का पालन करने रूप गृहस्थचारित्र धर्म और गृहस्थावास को छोड़ कर पांच महाव्रत आदि • का पालन करने रूप अनगार चारित्र धर्म । संयम यानी अनगार चारित्र धर्म दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि सराग संयम और वीतराग संयम। सरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि सूक्ष्म संज्वलन कषाय जिसमें रहता है ऐसे दसवें गुणस्थानवर्ती साधु का संयम सूक्ष्म संपराय सरागसंयम और बादर कषाय जिसमें रहता है यानी छठे से नवें गुणस्थान तक के जीवों का संयम बादर सम्पराय सरागसंयम। सक्ष्म सम्पराय सराग संयम दो प्रकार का कहा गया है यथा - सक्ष्म सम्पराय गुणस्थान को प्राप्त हुए जिसे अभी एक ही समय हुआ है वह प्रथम समय सूक्ष्म सम्पराय सरागसंयम और सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान को प्राप्त हुए जिसे एक समय से अधिक समय हो गया है. वह अप्रथम समय सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम। अथवा सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम के दूसरी तरह से दो भेद हैं जैसे कि चरम समय सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम यानी सूक्ष्म सम्पराय नामक दसवें गुणस्थान का अन्तिम समय और अचरम समय सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम। अथवा सूक्ष्मसम्पराय सराग संयम के दूसरी तरह से दो भेद कहे गये हैं जैसे कि उपशम श्रेणी से गिरते हुए जीव का जो सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम है वह संक्लिश्यमान कहलाता है और उपशम श्रेणी में चढ़ते हुए जीव का सूक्ष्मसम्पराय सराग संयम विशुद्ध्यमान कहा जाता है। बादर सम्पराय सरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है यथा - प्रथम समय बादर सम्पराय सराग संयम और अप्रथम समय बादर सम्पराय सराग संयम अथवा चरम समय बादर सम्पराय सराग संयम और अचरम समय बादर सम्पराय सराग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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