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________________ - स्थान २ उद्देशक १ . ५७ तीर्थंकर भगवान् के उपदेश को ग्रथित किया है उन आगमों को अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान कहते हैं। आचारांग आदि बारह अंगों का ज्ञान अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान है। २. अंग बाह्य श्रुतज्ञान - द्वादशांगी के बाहर का शास्त्रज्ञान अंगबाह्य श्रुतज्ञान कहलाता है। जैसे दशवैकालिक आदि। अंग बाहा के दो भेद हैं - १. आवश्यक - जो अवश्य करने योग्य है वह आवश्यक कहलाता है जैसा कि कहा है - समणेण सावएण य अवस्स कायव्ययं हवइ जम्हा। अंतो अहो णिसस्स य, तम्हा आवस्सयं णामं॥ अर्थ - साधु, साध्वी और श्रावक, श्राविका के लिये दिन और रात्रि के अंत में जो कारण से अवश्य करने योग्य है वह आवश्यक कहलाता है। आवश्यक के सामायिक आदि छह भेद हैं। २. आवश्यक व्यतिरिक्त - आवश्यक से जो भिन्न है वह आवश्यक व्यतिरिक्त कहलाता है। आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद है - १. कालिक श्रुत - दिन और रात्रि के प्रथम और अंतिम प्रहर में जिन सूत्रों को पढ़ने की आज्ञा है वे कालिक श्रुत कहलाते हैं। जैसे - उत्तराध्ययन आदि २. उत्कालिक श्रुत - जिन आगमों को पढने में समय की मर्यादा निश्चित नहीं है अर्थात् जो अस्वाध्याय के समय को टाल कर किसी भी समय पढ़े जा सकते हैं वे उत्कालिक श्रुत कहलाते हैं जैसे दशवैकालिक सूत्र आदि। दुविहे धम्मे पण्णत्ते तंजहा - सुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे चेव। सुयधम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - सुत्तसुयधम्मे चेव, अत्थसुयधम्मे चेव। चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - अगारचरित्तधम्मे चेव, अणगारचरित्तधम्मे चेव। दुविहे संजमे पण्णत्ते तंजहासरागसंजमे चेक, वीयरागसंजमे चेव। सराग संजमे दुविहे पण्णत्ते तंजहासुहुमसंपराय सरागसंजमे चेव, बायरसंपराय सरागसंजमे चेव। सुहमसंपराय सरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - पढमसमय सुहमसंपराय सरागसंजमे चेव, अपढमसमय सुहमसंपराय सरागसंजमे चेव। अहवा चरमसमय सहमसंपराय सरागसंजमे चेव, अचरमसमय सुहुमसंपराय सरागसंजमे चेव। अहवा सुहुमसंपराय सरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - संकिलेसमाणए चेव, विसुज्झमाणए चेव। बायरसंपराय सरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - पढमसमय बायरसंपराय सरागसंजमे चेव, अपढमसमय बायरसंपराय सरागसंजमे चेव। अहवा चरमसमय बायरसंपराय सरागसंजमे अचरमसमयबायर संपराय सरागसंजमे चेव। अहवा बायर संपराय सरागसंजमे दुविहे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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