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________________ श्री स्थानांग सूत्र केवलणाणे - एकानन्तर सिद्ध केवलज्ञान, अणेक्काणंतर सिद्ध केवलणाणे अनेकानन्तरसिद्धकेवलज्ञान, भवपच्चइए भव प्रत्यय, खओवसमिए क्षायोपशमिक, उज्जुसइ - ऋजुमति, विउलमइ - विपुलमति, सुयणिस्सिए श्रुतनिश्रित, असुयणिस्सिए - अश्रुत निश्रित, अत्थोग्गहे - अर्थावग्रह, वंजणोग्गहे - व्यञ्जनावग्रह, अंगपविट्ठे - अंगप्रविष्ट, अंगबाहिरे - अंग बाह्य, आवस्सएआवश्यक, आवस्सयवइरित्ते - आवश्यक व्यतिरिक्त, कालिए - कालिक, उक्कालिए - उत्कालिक । भावार्थ - ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि प्रत्यक्ष यानी पांच इन्द्रियाँ और मन की सहायता के बिना पदार्थों को जानने वाला ज्ञान और परोक्ष यानी पांच इन्द्रियाँ और मन की सहायता से पदार्थों को जानने वाला ज्ञान । प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है। जैसे कि केवलज्ञान, और नोकेवलज्ञान । केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि भवस्थ केवलज्ञान और मोक्ष स्थित सिद्ध भगवान् का केवलज्ञान । भवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है यथा - सयोगिभवस्थ केवलज्ञान यानी तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोगी केवली का केवलज्ञान और अयोगिभवस्थकेवलज्ञान यानी चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी केवली का केवलज्ञान । सयोगिभवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि जिस सयोगी केवली को केवलज्ञान उत्पन्न हुए अभी एक समय ही हुआ है। वह प्रथम समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान और जिस सयोगी केवली को केवलज्ञान उत्पन्न हुए एक समय से अधिक समय हो गया है वह अप्रथमसमय सयोगिभवस्थ, केवलज्ञान । अथवा सयोगिभवस्थकेवलज्ञान के दूसरी तरह से दो भेद बतलाये जाते हैं। तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोगी केवली का अन्तिम समय का केवलज्ञान वह चरमसमयसयोगिभवस्थकेवलज्ञान और अचरमसमय सयोगिभवस्थकेवलज्ञान। इसी प्रकार अयोगिभवस्थकेवलज्ञान के भी भेद समझना चाहिए। सिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि जिसको सिद्ध हुए अभी एक समय ही हुआ है वह अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान और जिसको सिद्ध हुए एक समय से अधिक हो गया है। वह परम्परासिद्धकेवलज्ञान। अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि एक समय में एक ही सिद्ध हो वह एकानन्तरसिद्ध केवलज्ञान और एक समय में अनेक सिद्ध हो वह अनेकानन्तरसिद्ध केवलज्ञान। परम्परासिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि एक समय में जो एक ही सिद्ध हुआ हो वैसे का केवलज्ञान एक परम्परा सिद्ध केवलज्ञान और अनेक परम्परासिद्ध केवलज्ञान नोकेवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान । अवधिज्ञान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि भवप्रत्यय-जिस अवधिज्ञान के होने में भव ही कारण हो उसे भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहते हैं और क्षायोपशमिक ज्ञान तप आदि कारणों से जो अवधिज्ञान होता है उसे क्षायोपशमिक अवधिज्ञान कहते हैं । देव और नैरयिक इन दोनों को भवप्रत्यय अवधिज्ञान यानी जन्म से मरण तक रहने वाला ही अवधिज्ञान होता है ऐसा कहा गया है अर्थात् देवता और नारकी ५४ Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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