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________________ ४७ स्थान २. उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - गरिहा - गर्दा, एगे - कितनेक, गरहइ - गर्दा (निंदा) करता है, पच्चक्खाणे- प्रत्याख्यान, पच्चक्खाइ- प्रत्याख्यान करता है, दीहं - दीर्घ, अद्धं - काल तक, रहस्संह्रस्व, संपण्णे- संपन्न, अणाइयं - अनादि, अणवयग्गं - अनवदग्र-अनन्त, दीहमद्धं - दीर्घ मार्ग वाले, चाउरंत - चार अंत वाले, संसार कंतारं - संसार रूप कान्तार (अरण्य) वन को, वीइवएज्जा - अतिक्रमण कर जाता है-पार कर जाता है, विज्जाए - विद्या-ज्ञान से, चरणेण - चारित्र से। - भावार्थ - स्वकृत पाप की गुरु के सामने निन्दा करना गर्दा है। वह दो प्रकार की कही गई है यथा - कितनेक पुरुष मन से ही पाप की निन्दा करते हैं और कितनेक पुरुष केवल वचन से ही अपने पाप की निन्दा करते हैं अथवा दूसरे प्रकार से गर्दा दो प्रकार की कही गई है जैसे कि कितनेक पुरुष दीर्घ काल तक अर्थात् लम्बे समय तक अपने पाप की निन्दा करते हैं और कितनेक ह्रस्व यानी अल्प काल तक अपने पाप की निन्दा करते हैं। प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि - कितनेक पुरुष मन से ही पाप का प्रत्याख्यान - त्याग करते हैं और कितनेक पुरुष वचन से ही प्रत्याख्यान करते हैं। अथवा दूसरे प्रकार से प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि कितनेक पुरुष दीर्घ काल के लिए यानी यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं और कितनेक पुरुष ह्रस्व यानी थोड़े समय के लिये प्रत्याख्यान करते हैं। विदया से यानी ज्ञान से और चारित्र से, इन दो स्थानों से यानी गुणों से सम्पन्न - युक्त अनगार - साधु अनादि अनन्त दीर्घ काल वाले अथवा दीर्घ मार्ग वाले चार अन्त यानी नरकादि गति रूप चार विभाग वाले संसार रूप कान्तार (अरण्य) वन को अतिक्रमण कर जाता है यानी पार कर जाता है अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर लेता है। .. विवेचन - दुष्कृत (खराब) आचरण की निन्दा गर्दा कहलाती है। स्व और पर के भेद से गर्दा दो प्रकार की होती है अथवा द्रव्य और भाव से गर्दा के दो भेद हैं। मिथ्यादृष्टि और उपयोग रहित सम्यगदृष्टि जीव के द्रव्य गर्दा होती है। और उपयोग युक्त सम्यग्दृष्टि जीव के भाव गर्दा होती है। यहां साधन (करण) की अपेक्षा गर्दा के दो भेद कहे हैं - १. मानसिक गर्दा और २. वाचिक गरे। कोई मन से स्वकृत पाप की निन्दा करता है और कोई वचन से निन्दा करता है। मन और वचन की गर्हा की अपेक्षा से टीकाकार ने चार भंग किये हैं - १. एक मन से गर्दा करता है वचन से नहीं २. एक वचन से गर्दा करता है मन से नहीं ३. एक मन से भी गर्दा करता है और वचन से भी गर्दा करता है ४. एक मन से भी गर्दा नहीं करता और वचन से भी गर्दा नहीं करता है। ___ काल की अपेक्षा सूत्रकार ने गर्दा के दो भेद किये हैं - १. दीर्घकालीन गर्हा और २. अल्पकालीन गरे । प्रत्याख्यान का अर्थ बतलाते हुए टीकाकार ने कहा है - ___"प्रमादप्रातिकूल्येन मर्यादयाख्यान-कथनं प्रत्याख्यानं, विधि-निषेध विषया प्रतिज्ञेत्यर्थः" अर्थ - मर्यादापूर्वक पाप कर्म न करने की तथा भगवान् की आज्ञा पालन करने की दृढ़ प्रतिज्ञा को प्रत्याख्यान कहा जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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