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________________ ४० श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 हाथ से अपने प्राणों का या परप्राणों का हनन करवाने से लगने वाली क्रिया परहस्त प्राणातिपातिकी है। अप्रत्याख्यानी क्रिया दो प्रकार की कही गई है यथा-जीव सहित वनस्पति आदि पदार्थों का पच्चक्खाण न करने से लगने वाली जीव अप्रत्याख्यानिकी क्रिया और मदिरा आदि पदार्थों का प्रत्याख्यान न करने से लगने वाली क्रिया अजीव अप्रत्याख्यानिकी कहलाती हैं। विवेचन - प्रश्न - ईर्यापथिकी क्रिया किसे कहते हैं ? उत्तर - "ईरणमीर्या - गमनं तद्विशिष्टः पन्था ईर्यापथस्तत्र भवा ऐर्यापथिकी" - मार्ग में यतनापूर्वक गमन करते समय काययोग के कारण जो क्रिया होती है वह ईर्यापथिकी क्रिया है। अथवा उपशान्त मोह, क्षीण मोह और सयोगी केवली इन ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थानों में रहे हुए अप्रमत्त साधु को सिर्फ योग के कारण जो साता वेदनीय रूप कर्म बन्धता है उसे ईर्यापथिकी क्रिया कहते हैं। यह क्रिया पहले समय में बंधती है। दूसरे समय में वेदी जाती है और तीसरे समय में उसकी निर्जरा हो जाती है। प्रश्न - सांपरायिकी क्रिया किसे कहते हैं ? उत्तर-संपराय यांनी कषाय के कारण जीव को लगने वाली क्रिया सांपरायिकी क्रिया कहलाती है। पहले गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्म संपराय गुणस्थान वालों को यह क्रिया लगती है। जीव क्रिया के द्वारा कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है। कर्म अजीव होने के कारण इन दोनों क्रियाओं को अजीव क्रिया कहा है। कायिकी क्रिया - शरीर की प्रवृत्ति से होने वाली क्रिया कायिकी क्रिया है। इसके दो भेद हैं-१. अनुपरत काय क्रिया - अविरत (सावध कार्यों से निवृत्त न होने) सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव के काया की हलन चलन आदि से लगने वाली क्रिया और २. दुष्प्रयुक्त कायिकी क्रिया - इष्ट अनिष्ट विषय में सुख दुःख उत्पन्न होने से और मन के बुरे संकल्पों से लगने वाली क्रिया। आधिकरणिकी क्रिया - जिस क्रिया से जीव नरक में जाने का अधिकारी बनता है उसे 'अधिकरण' कहते हैं। अथवा तलवार आदि उपघातक शस्त्रों को 'अधिकरण' कहते हैं उनको बनाने और संग्रह करने की प्रवृत्ति को आधिकरणिकी क्रिया कहते हैं। इसके दो भेद हैं-१. संयोजनाधिकरणिकीपूर्व निर्मित शस्त्र आदि हिंसक उपकरणों के पुों के संयोजन से लगने वाली क्रिया जैसे कि तलवार और तलवार के मूठ को मिलाना, तथा ऊखल और मूसल को मिलाना। २. निर्वर्तनाधिकरणिकीतलवार आदि शस्त्रों के निर्माण से लगने वाली क्रिया अर्थात् नये शस्त्र आदि बनाना। प्रादेषिकी - जीव या अजीव पर द्वेष करने से जो क्रिया लगती है उसे प्राद्वेषिकी क्रिया कहते हैं। जीव प्राद्वेषिकी और अजीव प्राद्वेषिकी के रूप में इसके दो भेद होते हैं। पारितापनिकी - दूसरें जीवों को परिताप (पीडा) देने वाली क्रिया पारितापनिकी कहलाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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