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________________ श्री स्थानांग सूत्र 10000 क्रियावादी, कठिन शब्दार्थ - वाइसमोसरणा- वादियों के समवसरण, किरियावाई अकिरियावाई - अक्रियावादी, अण्णाणियावाई- अज्ञानवादी, वेणइयावाई - विनयवादी । भावार्थ - चार प्रकार के वादियों के समवसरण कहे गये हैं यथा- क्रियावादी, अक्रियावादी अज्ञानवादी और विनयवादी । क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ और विनयवादी के ३२, ये कुल मिला कर ३६३ पाखण्डियों के मत हैं । नैरयिकों में चार वादी समवसरण कहे गये हैं यथा - क्रियावादी यावत् विनयवादी । विकलेन्द्रिय यानी एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चरिन्द्रियको छोड़ कर असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक यावत् वैमानिक देवों तक इसी तरह चार वादी - समवसरण होते हैं । विवेचन - आगमों में "समोसरणं" शब्द का प्रयोग आता है जिसका अर्थ है समवसरण अर्था तीर्थङ्कर भगवान् का, गणधरों का, आचार्यों का एवं सामान्य साधुओं का पदार्पण (पधारना) होता है किन्तु यहाँ पर यह अर्थ नहीं है। यहाँ पर तो अन्य तीर्थिक ( अन्य मतावलम्बी) का समूह अतः वादी समवसरण का अर्थ है ३६३ पाखण्डी मत का समुदाय । ४०८ वादी के चार भेद - १. क्रिया वादी २. अक्रिया वादी ३. विनय वादी ४. अज्ञान वादी । ९. क्रिया वादी - इसकी भिन्न-भिन्न व्याख्याएं हैं। यथा १. कर्त्ता के बिना क्रिया संभव नहीं है। इसलिए क्रिया के कर्त्ता रूप से आत्मा के अस्तित्व को मानने वाले क्रियावादी हैं। २. क्रिया ही प्रधान है और ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार क्रिया को प्रधान मानने वाले क्रियावादी हैं । ३. जीव अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को एकान्त रूप से मानने वाले क्रियावादी हैं । क्रियावादी के १८० भेद हैं - जीव, अजीव, आस्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष, इन नव पदार्थों के स्व और पर से १८ भेद हुए । इन अठारह के नित्य, अनित्य रूप से ३६ भेद हुए। इन में से प्रत्येक काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा पाँच पाँच भेद करने से १८० भेद हुए। जैसे जीव, स्व रूप से काल की अपेक्षा नित्य है । जीव स्वरूप से काल की अपेक्षा अनित्य है । जीव पररूप से काल की अपेक्षा नित्य है। जीव पर रूप से काल की अपेक्षा अनित्य है । इस प्रकार काल की अपेक्षा चार भेद हैं। इसी प्रकार नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा जीव के चार चार भेद होते हैं। इस तरह जीव आदि नव तत्त्वों के प्रत्येक के बीस बीस भेद होते हैं। इस प्रकार कुल १८० भेद होते हैं। २. अक्रियावादी - अक्रियावादी 'भी अनेक व्याख्याएं हैं। यथा १. किसी भी अनवस्थित पदार्थ में क्रिया नहीं होती है। यदि पदार्थ में क्रिया होगी तो वह अनवस्थित न होगा। इस प्रकार पदार्थों को अनवस्थित मान कर उसमें क्रिया का अभाव मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only - · www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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