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________________ २५४ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अशुद्ध मन वाला। इस प्रकार चौभङ्गी बनती है। इसी प्रकार संकल्प से लेकर पराक्रम तक यानी शुद्ध संकल्प, शुद्ध प्रज्ञा, शुद्ध दृष्टि, शुद्ध शीलाचार और शुद्ध व्यवहार इनकी भी पुरुष की अपेक्षा चौभङ्गियाँ कह देनी चाहिए किन्तु वस्त्र की अपेक्षा ये चौभङ्गियां नहीं बनती हैं क्योंकि वस्त्र में मन, संकल्प आदि नहीं पाये जाते हैं। .... विवेचन - प्रतिमाधारी साधु को चार प्रकार की भाषा बोलना कल्पता है - १. याचनी २. पृच्छनी ३. अनुज्ञापनी और ४. व्याकरणी। भाषा के चार भेद हैं - १. सत्य भाषा २. असत्य भाषा ३. सत्यामृषा भाषा (मिश्र) और ४. असत्यामृषा अर्थात् असत्या अमृषा भाषा (व्यवहार भाषा)। -- १. सत्य भाषा - विद्यमान जीवादि पदार्थों का यथार्थ स्वरूप कहना सत्य भाषा है। अथवा सन्त अर्थात् मुनियों के लिए हितकारी निरवद्य भाषा सत्य भाषा कही जाती है। २. असत्य भाषा - जो पदार्थ जिस स्वरूप में नहीं है। उन्हें उस स्वरूप से कहना असत्य भाषा है। अथवा सन्तों के लिए अहितकारी सावध भाषा असत्य भाषा कही जाती है। ३. सत्यामृषा भाषा (मिश्र भाषा)-जो भाषा सत्य है और मृषा भी है। वह सत्यामृषा भाषा है। ४. असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा - जो भाषा न सत्य है और न असत्य है। ऐसी आमन्त्रणा आज्ञापना आदि की व्यवहार भाषा असत्यामृषा भाषा कही जाती है। असत्यामृषा भाषा का दूसरा नाम व्यवहार भाषा है। पुत्र, वस्त्र, कोरक चत्तारि सुया पण्णत्ता तंजहा - अइजाए, अणुजाए, अवजाए, कुलिंगाले। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - सच्चे णामं एगे सच्चे, सच्चे णामं एगे असच्चे, एवं परिणए जाव परक्कमे। चत्तारि वत्था पण्णत्ता तंजहा - सुई णामं एगे सुई, सुई. णामं एगे असुई, चउभंगो। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - सुई णामं एगे सुई, चउभंगो, एवं जहेव सुद्धेणं वत्थेणं भणियं तहेव सुइणा वि जाव परक्कमे । चत्तारि कोरवा पण्णत्ता तंजहा - अबंपलंबकोरवे तालपलबकोरवे वल्लिपलबकोरवे . मेंढविसाणकोरवे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अंबपलबकोरव समाणे, तालपलबकोरव समाणे, वल्लिपलबकोरव समाणे, मेंढविसाणकोरव समाणे॥२८॥ कठिन शब्दार्थ - सुया - सुत अर्थात् पुत्र, अइजाए - अतिजात, अणुजाए - अनुजात, अवजाए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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