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________________ स्थान ३ उद्देशक १ 0000000000 आसणाई - आसन, सीहणायं सिंहनाद, चेलुक्खेवं वस्त्र का उत्क्षेप, चेइयरुक्खा - चैत्य वृक्ष, लोगंतिया लोकान्तिक । भावार्थ तीन कारणों से लोक में अन्धकार हो जाता है । यथा अरिहंत भगवान् मोक्ष में जाते हैं तब, अरिहंत भगवान् द्वारा फरमाया हुआ धर्म विच्छेद जाता है तब और पूर्वगत यानी पूर्वी में रहा हुआ दृष्टिवाद सूत्र विच्छेद जाता है तब, इन तीन बातों के होने पर लोक में अन्धकार हो जाता है। तीन कारणों से लोक में उद्योत यानी प्रकाश होता है । यथा - अरिहन्त भगवान् का जन्म होता है तब, अरिहन्त भगवान् दीक्षा लेते हैं तब, और अरिहंत भगवान् को केवल ज्ञान उत्पन्न होता है तब, देवकृत महोत्सव के समय लोक में उद्योत होता है। तीन कारणों से देवलोक में भी अन्धकार हो जाता है। यथा अरिहन्त भगवान् मोक्ष जाते हैं तब, अरिहन्त भगवान् का फरमाया हुआ धर्म विच्छेद जाता है तब और पूर्वगत दृष्टिवाद विच्छेद जाता है तब देवलोक में भी अन्धकार हो जाता है। तीन कारणों से देवलोक में उद्योत होता है। यथा - अरिहन्त भगवान् का जन्म होता है तब, अरिहन्त भगवान् दीक्षा लेते हैं तब और अरिहन्त भगवान् को केवल ज्ञान होता है तब देवकृत महोत्सव के समय देवलोक में प्रकाश हो जाता है। तीन कारणों से देवसन्निपात अर्थात् इस लोक में देवों का आगमन होता है। यथा अरिहन्त भगवान् जन्म लेते हैं तब, अरिहन्त भगवान् दीक्षा लेते हैं तब और अरिहन्त भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न होता है तब देवकृत महोत्सव के समय देव इस पृथ्वी पर आते हैं। इसी प्रकार उपरोक्त तीन कारणों से देव एक जगह एकत्रित होते हैं और देव हर्षनाद करते हैं। तीन कारणों से देवेन्द्र मनुष्य लोक में शीघ्र आते हैं। यथा- अरिहन्त भगवान् जन्म लेते हैं तब, अरिहंत भगवान् दीक्षा लेते हैं तब और अरिहन्त भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न होता है तब महोत्सव मनाते समय इन्द्र इस लोक में आते हैं। इसी तरह सामानिक अर्थात् इन्द्र के समान ऋद्धि वाले देव, त्रायत्रिंशक यानी देवों में गुरु तुल्य देव, लोकपाल यानी दिशाओं में नियुक्त सोम आदि देव, अग्रमहिषी यानी इन्द्र की प्रधान भार्या रूप देवियाँ, इन्द्र की परिषद् में उत्पन्न देव, अनीकाधिपति अर्थात् सेना के स्वामी देव और आत्मरक्षक अर्थात् इन्द्र के अङ्गरक्षक देव उक्त तीनों अवसरों पर शीघ्र ही मनुष्य लोक में आते हैं। तीन कारणों से देव अपने सिंहासन से उठ कर खड़े हो जाते हैं। यथा अरिहन्त भगवान् जन्म लेते हैं तब यावत् दीक्षा लेते हैं और उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न होता है तब । इसी प्रकार उक्त तीनों अवसरों पर देवों के आसन चलित होते हैं। वे सिंहनाद करते हैं और वे वस्त्र का उत्क्षेप करते हैं अर्थात् ध्वजाएँ फहराते हैं। तीन कारणों से देवों के सुधर्मा सभा आदि के प्रत्येक द्वार पर रहे हुए चैत्य वृक्ष चलित होते हैं। यथा-अरिहन्त भगवान् जन्म लेते हैं तब यावत् दीक्षा लेते हैं तब और उन्हें केवलज्ञान होता है। तब तीन कारणों से लोकान्तिक देव मनुष्य लोक में शीघ्र आते हैं। यथा अरिहन्त भगवान् जन्म लेते हैं तब, अरिहन्त भगवान् दीक्षा लेते हैं तब और अरिहन्त भगवान् को केवल ज्ञान उत्पन्न होता है तब देवकत महोत्सव के समय । - Jain Education International - - - For Personal & Private Use Only 1 १५७ www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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