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________________ ११० श्री स्थानांग सूत्र णवरं - इतनी विशेषता है कि, धायइरुक्खे - धातकी वृक्ष, पच्चत्यिमद्धेणं - पश्चिमार्द्ध में देवकुरुमहहुमा - देवकुरु महाद्रुम, देवकुरुमहहुमवासी - देव कुरु महाद्रुमबासी, मालवंत परियागावासी - माल्यवान् पर्यायवासी, एकासेला - एकशैल, मायंजणा - मातञ्जन, आसीविसा - आशीविष, सुहावहा - सुखावह, चंदपव्वया - चन्द्रपर्वत, सूरपव्यया - सूर्य पर्वत, उसुगारपव्वया - इषुकार पर्वत, उम्मत्तजलाओ - उन्मत्तजला, खीरोयाओ - क्षीरोदक, सीहसोयाओ - सिंह स्रोता, अंतोवाहिणीओ - अन्तर्वाहिनी, उम्मिमालिणीओ - उर्मिमालिनी, कच्छा - कच्छ, पुक्खलावई -: पुष्कलावती, वप्पगावई - वप्रगावती, वग्गू - वल्गु, खेमाओ - क्षेमा, रयणसंचयाओ - रत्नसंचया, विगयसोगाओ - विगतशोका, खग्गपुराओ - खड्गपुरा, अवज्झाओ - अवद्या, भहसाल वणा - भद्रशाल वन, णंदण वणा - नंदन वन, सोमणस वणा - सोमनस वन, पंडग वणा - पंडग वन, . पंडुकंबलसिलाओ - पाण्डुकम्बल शिला, अइरत्तकंबलसिलाओ - अति रक्त कम्बल शिला, मंदरचूलियाओ - मेरु पर्वत की चूलिकाएं। भावार्थ - धातकी खण्ड नामक द्वीप में पूर्वार्द्ध में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण दिशा में भरत और ऐरवत ये दो क्षेत्र कहे गये हैं यावत् वे दोनों समान हैं। इस प्रकार जैसा जम्बूद्वीप में कहा है वैसा यहां पर भी कह देना चाहिए यावत् भरत और ऐरवत इन दो क्षेत्रों में मनुष्य छहों आरों का अनुभव करते हुए विचरते हैं। यहां तक सारा अधिकार जम्बूद्वीप के समान कह देना चाहिए। केवल इतनी विशेषता है कि वहां पर क्रमशः कूटशाल्मली और धातकी ये दो वृक्ष हैं और इन पर क्रमशः गरुड़ वेणुदेव और सुदर्शन ये दो देव रहते हैं। धातकी खण्ड द्वीप में पश्चिमार्द्ध में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण दिशा में भरत और ऐरवत ये दो क्षेत्र कहे गये हैं यावत् ये दोनों समान हैं यावत् भरत और ऐरवत क्षेत्र में मनुष्य छहों आरों का अनुभव करते हुए विचरते हैं। यहां तक सारा अधिकार जम्बूद्वीप के समान कह देना चाहिए सिर्फ इतनी विशेषता है कि वहां पर वृक्षों के नाम कूटशाल्मली और महाधातकी वृक्ष हैं और इन पर क्रमशः गरुड़ वेणुदेव और प्रियदर्शन ये दो देव रहते हैं। धातकी खण्ड द्वीप में दो भरत, दो ऐरवत, दो हेमवत, दो हैरण्यवत, दो हरिवास, दो रम्यकवास, दो पूर्वविदेह, दो अपरविदेह यानी पश्चिमविदेह, दो देवकुरु, दो देवकुरु महाद्रुम, दो देवकुरु महाद्रुमवासी देव, दो उत्तरकुरु, दो उत्तरकुरुमहाद्रुम, दो उत्तरकुरु महाद्रुमवासी देव, दो चुल्लहिमवान्, दो महाहिमवान्, दो निषध, दो नीलवान्, दो रुक्मी, दो शिखरी, दो शब्दापाती, दो शब्दापातीवासी स्वाति देव, दो विकटापाती, दो विकटापातीवासी प्रभास देव, दो गन्धापाती, दो गन्धापातीवासी अरुण देव, दो माल्यवान् पर्याय, दो माल्यवान् पर्यायवासी पद्म देव, दो माल्यवान्, दो चित्रकूट, दो पद्मकूट, दो नलिनकूट, दो एकशैल, दो त्रिकूट, दो वैश्रमणकूट, दो अञ्जन, दो मातञ्जन, दो सोमनस, दो विदयुत्प्रभ, दो अङ्कावती, दो पद्मावती, दो आशीविष, दो सुखावह, दो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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