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________________ ८४ . श्री स्थानांग सूत्र । भावार्थ - आचार दो प्रकार का फरमाया है यथा - ज्ञानाचार और नोज्ञानाचार। नोज्ञानाचार दो • प्रकार का फरमाया है यथा - दर्शनाचार और नोदर्शनाचार। नोदर्शनाचार दो प्रकार का फरमाया है यथा - चारित्राचार और नोचारित्राचार। नोचारित्राचार दो प्रकार का फरमाया है यथा - तप आचार और वीर्याचार। भगवान् ने दो प्रतिमा अथवा प्रतिज्ञा फरमाई है यथा - मन के परिणाम पवित्र होना सो समाधिप्रतिमा और साधु की बारह और श्रावक की ग्यारह प्रतिमा का आचरण करना सो उपधान प्रतिमा। भगवान् ने दो प्रतिमाएं फरमाई हैं यथा - कषाय आदि का त्याग करना सो विवेकप्रतिमा और कायोत्सर्ग करना सो व्युत्सर्ग प्रतिमा। भगवान् ने दो प्रतिमाएं फरमाई हैं यथा - पूर्वादि चार दिशाओं में चार चार पहर तक कायोत्सर्ग करना सो भद्रा प्रतिमा। यह दो दिन में पूर्ण होती है और सुभद्राप्रतिमा भी इसी तरह जाननी चाहिए। भगवान् ने दो प्रतिमाएं फरमाई हैं यथा - चारों दिशाओं में एक एक दिन कायोत्सर्ग करना सो महाभद्रा प्रतिमा। यह चार दिन में पूर्ण होती है और दस दिशाओं में एक एक दिन कायोत्सर्ग करना सो सर्वतोभद्रा प्रतिमा। यह दस दिन में पूर्ण होती है। भगवान् ने दो प्रतिमाएं फरमाई हैं यथा - क्षुद्र मोक प्रतिमा और मोक प्रतिमा। दो प्रतिमाएं फरमाई हैं यथा - यवमध्य चन्द्र प्रतिमा, जो जौ नामक धान्य की तरह बीच में मोटी और दोनों किनारों पर पतली एवं चन्द्रमा की तरह घटती बढती हो। यथा - शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक कवल आहार लेवे फिर प्रतिदिन एक एक कवल बढाते जाय यावत् पूर्णिमा के दिन १५ कवल आहार लेवे। फिर कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को १५ कवल आहार लेवे फिर प्रतिदिन एक एक कवल घटाते जाय यावत् अमावस्या के दिन एक कवल आहार लेवे। यह यवमध्या चन्द्रप्रतिमा कहलाती है और वप्रमध्या चन्द्रप्रतिमा, कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को १५ कवल आहार लेवे फिर क्रमशः प्रतिदिन एक एक घटाते हुए अमावस्या को एक कवल लेवे। फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक कवल आहार लेवे फिर प्रतिदिन एक एक बढाते हुए पूर्णिमा के दिन १५ कवल आहार लेवे यह वज्रमध्या चन्द्रप्रतिमा है ____नोट - यवमध्य चन्द्रप्रतिमा और वा मध्य चन्द्र प्रतिमा का स्वरूप टीकाकार ने जो लिखा है वह आगम से मेल नहीं खाता है। क्योंकि व्यवहार सूत्र के दसवें उद्देशक में इन दोनों प्रतिमाओं का स्वरूप मूल पाठ में इस प्रकार बतलाया गया है-यवमध्य चन्द्र प्रतिमा को अंगीकार करने वाले अनगार को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) को एक दत्ति आहार लेना कल्पता है। फिर प्रति दिन एक-एक दत्ति बढ़ाता जाए यावत् पूर्णिमा के दिन पन्द्रह दत्ति आहार लेना कल्पता है। फिर कृष्णपक्ष । + टीकाकार ने लिखा है कि सुभद्र प्रतिमा का स्वरूप देखने में नहीं आया। इसलिए उसका स्वरूप नहीं लिखा गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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