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________________ ३५६ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पांचवें महाव्रत की पांच भावनाओं का वर्णन किया गया है जो संक्षेप में इस प्रकार है-साधु या साध्वी मनोज्ञ (प्रिय) १. शब्द २. रूप ३. गंध ४. रस और ५. स्पर्श में राग नहीं करे और अमनोज्ञ (अप्रिय) में द्वेष नहीं करे। . इच्चेएहिं पंचमहव्वएहिं पणवीसाहिं च भावणाहिं संपण्णे अणगारे अहासुयं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएण फासित्ता पालित्ता, सोहित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता आणाए आराहित्ता यावि भवइ॥१७९॥ पणरहमं अज्झयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - अहासुयं - यथाश्रुत, अहाकप्पं - यथाकल्प, अहामग्गं - यथामार्ग, सम्म - सम्यक् प्रकार से, सहातच्चं - यथा तथ्य। भावार्थ - इन उपरोक्त पांच महाव्रतों और उनकी पच्चीस भावनाओं से सम्पन्न अनगार यथाश्रुत, यथाकल्प यथामार्ग और यथातथ्य इनका काया से सम्यक् प्रकार से स्पर्श कर, पालन कर, अतिचारों का शोधन कर, इन्हें पार लगा कर, इनके महत्त्व का कीर्तन करके, आराधना करके भगवान् की आज्ञानुसार पालन करके आराधक बन जाता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधक भगवान् की आज्ञानुसार पांच महाव्रतों का आराधक किस प्रकार बन सकता है इसका संक्षिप्त वर्णन किया गया है। दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ४ और प्रश्न व्याकरण सूत्र के संवर द्वार में इसी प्रकार पांच महाव्रतों का वर्णन किया गया है। __ समवायांग सूत्र और आचारांग सूत्र की चूर्णि में वर्णित पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं के क्रम एवं वर्णन में कुछ अंतर है। इसका कारण वाचना भेद ही लगता है। इस पन्द्रहवें भावना नामक अध्ययन में सर्वप्रथम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जीवन पर प्रकाश डाला गया है तत्पश्चात् साधु, साध्वियों के पांच महाव्रत और उनकी पच्चीस भावनाओं का विस्तृत वर्णन है। इनका सम्यक् प्रकार से पालन और आराधन करके ही जीव आराधक बनता है और अंत में सभी कर्म बंधनों से मुक्त होकर शाश्वत सुखों को प्राप्त करता है। 9 भावना नामक पन्द्रहवां अध्ययन समाप्त ® ॥ तृतीय चूला समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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