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________________ अध्ययन १५ ३४९ ooooooor.........................00000000000000000000. आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिया, केवली बूया, णिग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराई मणोरमाइं इंदियाइं आलोएमाणे णिज्झाएमाणे संतिभेया संतिविभंगा जाव धम्माओ भंसिजा णो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराई मणोरमाइं इंदियाई आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिय त्ति दोच्चा भावणा॥२॥ अहावरा तच्चा भावणा, णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सुमरित्तए सिया, केवली बूया, णिग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवली पण्णत्ताओ धम्माओ भंसिज्जा णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरित्तए सिय त्ति तच्चा भावणा।। अहावरा चउत्था भावणा, णाइमत्त पाणभोयणभोई से णिग्गंथे णो पणीयरस भोयणभोई, केवली बूया, अइमत पाणभोयणभोई से णिग्गंथे, पणीयरस भोयणभोई च संतिभेया जाव भंसिजा, णो अइमत्त पाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो.पणीयरसभोयणभोई त्ति चउत्था भावणा॥ .. अहावरा पंचमा भावणा णो णिग्गंथे इत्थी पसु पंडग संसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सिया, केवली बूया, णिग्गंथे णं इत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताई सयणासणाई सेवमाणे संतिभेया जाव भंसिज्जा, णो णिग्गंथे इत्थी-पसुपंडग-संसत्ताई सयणासणाइंसेवित्तए सिय त्ति पंचमा भावणा॥५॥ . कठिन शब्दार्थ - इत्थीणं - स्त्रियों की, कह - कथा को, कहित्तए - कहने वाला, संति - शांति-चारित्र समाधि, भेया - भेद, भसिजा - भ्रष्ट हो जाता है, मणोहराई - मनोहर, आलोइत्तए - अवलोकन करना, णिज्झाइत्तए - आसक्ति पूर्वक देखना, पुष्वरयाईपूर्व रति को, पुव्व कीलियाई- पूर्व क्रीडा को, सरमाणे - स्मरण करता हुआ, पणीय रस भोयणभोई - प्रणीत रस भोजन भोजी, इत्थी पसु पंडग संसत्ताई - स्त्री, पशु, नपुंसक आदि से युक्त, सयणासयाई - शय्या उपाश्रय आसनादि को। .... भावार्थ - उस चतुर्थ महाव्रत की पांच भावनाएँ ये हैं। उन पांच भावनाओं में से . प्रथम भावना इस प्रकार है - निर्ग्रन्थ साधु बार-बार स्त्रियों की कथा नहीं कहे। केवली भगवान् का कथन है कि बार-बार स्त्रियों की कथा कहने वाला साधु शांति रूप चारित्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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