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________________ २१ अध्ययन १ उद्देशक २ . rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. वैश्य कुल, गंडागकुलाणि - गंडक कुल (नापित कुल) कोट्टागकुलाणि - बढई कुल, गामरक्खकुलाणि - ग्राम रक्षक कुल, बुक्कासकुलाणि- जुलाहे का कुल, अदुगुंछिएसु - अनिंदित, अगरहिएसु - अगर्हित। - भावार्थ - साधु अथवा साध्वी गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होकर जाने कि - उग्र कुल, भोग कुल, राजन्य कुल, क्षत्रिय कुल, इक्ष्वाकु कुल, हरिवंश कुल, गोपालों का कुल, वैश्य कुल, नापित कुल, बढई कुल, ग्रामरक्षक कुल और जुलाहा कुल तथा इसी प्रकार के अन्य भी अनिंदित, अगर्हित कुलों में से प्रासुक एषणीय आहार आदि प्राप्त हो तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को किस कुल में आहार के लिए जाना चाहिये। सूत्रकार ने जिन कुलों का उल्लेख किया है वे इस प्रकार हैं - १. उग्र कुल - रक्षक कुल, जो जनता की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहता है, २. भोग कुल - राजाओं के लिए सम्मान्य ३. राजन्य कुल- मित्र के समान व्यवहार करने वाला कुल ४. क्षत्रिय कुल - जो प्रजा की रक्षा के लिए शस्त्रों को धारण करता है ५. इक्ष्वाकु कुलभगवान् ऋषभदेव का कुल ६. हरिवंश कुल- भगवान् अरिष्टनेमिनाथ का कुल ७. एष्य कुल - गोपाल आदि का कुल ८. वैश्य कुल - वणिकों का कुल ९. गण्डाक कुल - नाई आदि का कुल १०. कुट्टाक कुल - वर्द्धकी - बढ़ई, सुथार आदि का कुल ११. ग्राम रक्षक कुल - कोतवाल आदि का कुल और १२. बुक्कस कुल - तन्तुवाय (जुलाहाकपड़े बुनने वाला) आदि के कुल एवं इसी तरह के अन्य कुलों से भी साधु आहार ग्रहण कर सकता है जो निन्दित एवं घृणित कर्म करने वाले न हों। अर्थात् लोक में जिनकी निन्दा या घृणा न की जाती हो ऐसे कुल। तन्तुवाय कुल, आगम काल में उच्च कुल समझा जाता था जहाँ पर साधु-साध्वी ठहरते थे। भगवती सूत्र शतक १५ में इसका वर्णन आया है। वर्तमान काल में इसे निम्न कुल माना जाता है। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे से जाइं पुण कुलाई जाणिज्जा-असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, समवाएसु वा, पिंडणियरेसु वा, इंदमहेसु वा, खंदमहेसु वा, रूद्दमहेसु वा, मुगुंदमहेसु वा, भूयमहेसु वा, जक्खमहेसु.वा, णागमहेसु वा, थूभमहेसु वा, चेइयमहेसु वा, रूक्खमहेसु वा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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