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________________ १७८ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध orretterrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr धुवं चेयं जाणिज्जा, अधुवं चेयं जाणिज्जा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा माइमं वा लभिय णो लभिय, भुंजिय णो भुंजिय, अदुवा आगओ अदुवा णो आगओ, अदुवा एइ अदुवा णो एइ, अदुवा एहिइ अदुवा णो एहिइ, इत्थ वि आगए इत्थ वि णो आगए, इत्थ वि एइ इत्थ वि णो एइ, इत्थ वि एहिइ इत्थ वि णो एहिइ॥ कठिन शब्दार्थ - धुवं - ध्रुव-निश्चित, अधुवं - अध्रुव-अनिश्चित, एइ - आता है, एहिइ - आएगा। भावार्थ - साधु ध्रुव-निश्चयकारी और अध्रुव भाषा को जान कर उसका त्याग करे। पूरी जानकारी नहीं होने पर किसी के पूछने पर साधु या साध्वी इस प्रकार निश्चयात्मक भाषा न बोले कि - अमुक साधु अशनादि आहार लेकर आयेगा अथवा नहीं आयेगा, वह साधु वहां आहार करके आयेगा या आहार का उपभोग किये बिना ही आयेगा, वह आया था अथवा नहीं आया था, वह आता है या नहीं आता है, वह आयेगा अथवा नहीं आयेगा-ऐसी . निश्चयकारी भाषा का साधु साध्वी प्रयोग न करे। विवेचन - साधु साध्वी को निश्चयात्मक एवं संदिग्ध भाषा नहीं बोलनी चाहिये। क्योंकि जिस बात के विषय में निश्चित ज्ञान नहीं है उसे प्रकट करने से दूसरे महाव्रत में दोष लगता है। अतः साधु साध्वी को बोलते समय पूर्णतया विवेक एवं सावधानी रखनी चाहिये। अणुवीइ णिट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा, तं जहा - एगवयणं १, दुवयणं २, बहुवयणं ३, इत्थीवयणं ४, पुरिसवयणं ५, णपुंसगवयणं ६, अज्झत्थवयणं ७, उवणीयवयणं ८, अवणीयवयणं ९, उवणीय अवणीय वयणं १०, अवणीय उवणीय वयणं ११, तीयवयणं १२, पडुप्पण्णवयणं १३, अणागयवयणं १४, पच्चक्खवयणं १५, परोक्खवयणं १६॥ ___कठिन शब्दार्थ - अणुवीइ - सोच-विचार कर, णिट्ठाभासी - निश्चयपूर्वक बोलने वाला, स्पष्ट भाषी, अज्झत्थवयणं - अध्यात्म वचन, उवणीयवयणं - उपनीत-प्रशंसा युक्त वचन, अवणीपवयणं - अपनीत-अप्रशंसात्मक-निंदा युक्त वचन, तीयवयणं - अतीत वचन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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