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________________ अध्ययन ३ उद्देशक ३ १७५ srrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. सांप या अन्य हिंसक जीवों को देखकर भयभीत होता हुआ उन्मार्ग से गमन न करे, गहन वन अथवा दुर्ग में प्रवेश न करे न ही वृक्षादि पर चढ़े और न ही गहरे पानी बाड आदि में छिपे (प्रवेश करे)। सेना, शस्त्र अथवा अन्य किसी के शरण की इच्छा न करे। किन्तु राग-द्वेष से रहित होकर समाधि पूर्वकं ग्रामानुग्राम विचरे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिज्जा इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवगरणपडियाए संपिंडिया गच्छिज्जा णो तेसिं भीओ उम्मग्गेण गच्छिज्जा जाव समाहिए तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥१३०॥ __ कठिन शब्दार्थ - विहं - लम्बा मार्ग-अटवी आदि, आमोसगा - आमोषक-चोर, उवगरणपडियाए - उपकरणों को लेने के लिए, संपिंडिया -.एकत्रित हुए हैं। भावार्थ - साधु अथवा साध्वी को ग्रामानुग्राम विहार करते हुए बीच में लम्बे मार्ग (अटवी आदि) को पार करने का प्रसंग आ जाय और ऐसा जाने कि मार्ग में बहुत से चोर · वस्त्रादि उपकरणों को लूटने के लिए एकत्रित होकर आते हैं (या आने वाले हैं) तो साधु उनसे भयभीत होकर उन्मार्ग में न जाए, किन्तु उसी मार्ग पर राग-द्वेष से रहित होकर समाधि भाव पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करने में प्रवृत्त रहे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिंडिया गच्छिज्जा, ते णं आमोसगा एवं वइजा-आउसंतो समणा! आहर एयं वत्थं वा पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा, देहि णिक्खिवाहि, तं णो दिज्जा, णिक्खिविज्जा, णो वंदिय-वंदिय जाइजा, णो अंजलिं कट्ट जाइज्जा, णो कलुणपडियाए जाइज्जा, धम्मियाए जायणाए जाइज्जा, तुसिणीय भावेण वा उवेहिज्जा। ते णं आमोसगा सयं करणिजं त्ति कट्ट अक्कोसंति वा जाव उद्दविंति वा वत्थं वा पायं वा कंबलं वा, पायपुंछणं वा, अच्छिंदिज वा जाव परिविज वा, तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो गाहावइ! एए खलु आमोसगा उवगरणपडियाए सयं करणिजं ति कट्ट अक्कोसंति वा जाव परिहवेंति वा, एयप्पगारं मणं वा वयणं वा णो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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