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________________ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध उपर्युक्त सूत्र में गृहस्थ के द्वारा पीठ, फलक आदि वस्तुओं को उठाने पर उस उपाश्रय में रहना अकल्पनीय बताया है। स्वयं साधु के द्वारा इधर-उधर बिखरे सामान को एक तरफ रखने में बाधा नहीं समझी जाती है परन्तु बिस्तर आदि अलग रखना शोभनिक नहीं दिखता है । कुर्सी आदि स्वयं इधर-उधर कर सकते हैं। गृहस्थ के द्वारा अयतना पूर्वक सामान इधरउधर किए जाने पर उस समय तो वर्जन करना ही उचित है एवं वह घर भी असूझता करना ही ध्यान में आता है। १०८ भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा तंजहा - खंधंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णयरंसि वा, तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि णण्णत्थ आगाढागाढेहिं कारणेहिं, ठाणं वा 'सेज्जं वा णिसीहियं वा णो चेइज्जा ॥ कठिन शब्दार्थ - अंतलिक्खजायंसि अंतरिक्षजात-आकाश-ऊंचे स्थान में, हम्मियतलंसि - हर्म्यतल - ऊपर की अट्टालिका, आगाढागाढेहिं- गाढागाढ - किसी विशेष - या प्रगाढ । भावार्थ - साधु या साध्वी स्तंभ पर, मचान पर, माले पर प्रासाद ( दूसरी मंजिल ) पर, महल पर या अन्य किसी ऊंचे स्थान पर निर्मित उपाश्रय में बिना किसी कारण विशेष के निवास, शय्या और स्वाध्याय आदि न करे । से आहच्च चेइए सिया णो तत्थ सीओदगवियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा, पायाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहं वा, उच्छोलिज्ज वा, पहोइज्ज वा, णो तत्थ ऊसढं पकरेज्जा तं जहा - उच्चारं वा, पासवणं वा, खेलं वा, सिंघाणं वा, वंतं वा, पित्तं वा, पूयं वा, सोणियं वा, अण्णयरं वा, सरीरावयवं वा, केवली बूया - आयाणमेयं, से तत्थ ऊसढं पकरेमाणे पयलिज्ज वा पवंडिज्ज वा, से तत्थ पयलेमाणे वा पवडेमाणे वा हत्थं वा जाव सीसं वा अण्णयरं वा कायंसि इंदियजायं लूसिज्ज वा पाणाणि वा, भूयाणि वा, जीवाणि वा, सत्ताणि वा, अभिहणिज्ज वा जाव ववरोविज्ज वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणे, एस उवएसे जाव जं तहप्पगारे उवस्सए अंतलिक्खजाए णो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेइज्जा ॥ ६६ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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