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________________ आठवां अध्ययन - तृतीय उद्देशक - आहार करने का कारण aaaaaaa aa aa aj रहित - निर्ग्रथ कहा गया है। उपपात और च्यवन शब्द प्रायः देवों के संबंध में प्रयुक्त होते हैं। इसका आशय यह समझना चाहिये कि दिव्य शरीरधारी देवों का शरीर भी जब जन्म मरण के कारण नाशवान् है तो फिर औदारिक शरीरधारी मनुष्य और तिर्यंचों के नाशवान् शरीर का तो कहना ही क्या ? इस प्रकार शरीर की नश्वरता का चिंतन करते हुए साधक संसार की, आहार आदि की आसक्ति एवं पाप कर्मों का त्याग करे । आहार करने का कारण (४१६) आहारोवचया देहा, परिसह पभंगुरा । पासहेगे सव्विंदिएहिं परिगिलाय माणेहिं । कठिन शब्दार्थ - आहारोवचया आहार से उपचित, परीसह पभंगुरा भंग को प्राप्त, सव्विंदिएहिं - सब इन्द्रियों से, परिगिलायमाणेहिं - ग्लानि को प्राप्त । Jain Education International २६७ भावार्थ - शरीर, आहार से उपचित (संपुष्ट) होता है और परीषह से भग्न हो जाता है किंतु तुम देखो कितनेक साधक परीषह आने पर ( क्षुधा से पीडित होने पर) सभी इन्द्रियों से ग्लानि को प्राप्त होते हैं अर्थात् उनकी इन्द्रियों की शक्ति शिथिल हो जाती है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में आहार करने का कारण स्पष्ट किया गया है। आहार से शरीर की वृद्धि (पुष्टि) होती है और आहार के अभाव में शरीर म्लान हो जाता है। क्षुधा से पीड़ित होने पर आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। कानों से सुनना और नाक से सूंघना भी कम हो जाता है। इस प्रकार परीषह आने पर देह टूट जाता है, इन्द्रियाँ मुर्झा जाती है। आहार से शरीर . पुष्ट होता है। शरीर को पुष्ट और सशक्त रखने का उद्देश्य है। संयम पालन और परीषह सहन । साधक को क्यों आहार करना चाहिये और क्यों छोड़ना चाहिये, इसके लिये उत्तराध्ययन सूत्र अ० २६ गाथा ३३ एवं ३५ में छह-छह कारण बताये हैं जो क्रमशः इस प्रकार हैं - - साधक निम्न छह कारणों से आहार करे वेयण वैयाव इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाण वतियाए, छडं पुण धम्मचिंताए ॥ ३३ ॥ १. क्षुधा वेदनीय को शांत करने के लिए - For Personal & Private Use Only परीषह से www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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