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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRORS तक वह यौवन और धन के मद से अन्ध होकर दुराचार का सेक्न करता है परंतु जब वृद्धावस्था आती है तब वह मृत्युकाल को निकट देख कर अत्यंत पश्चात्ताप करता है।. अतः विवेकी पुरुष को पहले से ही सोच विचार कर ऐसा कार्य करना चाहिये जिससे भविष्य में किसी तरह का पश्चात्ताप न करना पड़े।
लोक-दर्शन
(१३२) आययचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहोभागं जाणइ, उद्धं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ।
कठिन शब्दार्थ - आययचक्खू - आयतचक्षुः-दीर्घदर्शी, लोगविपस्सी - लोकदर्शीलोक को देखने वाला। .. भावार्थ - दीर्घदर्शी तथा लोक के स्वरूप को जानने वाला पुरुष लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्श्वभाग को-जानता है और तिरछे भाग को जानता है।
. सच्चा वीर कौन?
(१३३) गढिए लोए अणुपरियट्टमाणे, संधिं विइत्ता इह मच्चिएहि, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए।
कठिन शब्दार्थ - गढिए - गृद्ध-आसक्त, अणुपरियट्टमाणे - अनुपरिवर्तन - परिभ्रमण करता है, संधिं - संधि (अवसर) को, मच्चिएहिं - मनुष्य लोक में, पसंसिए - प्रशंसनीय, बद्धे - बद्ध को, पडिमोयए - मुक्त करता है। ____ भावार्थ - दीर्घदर्शी पुरुष यह जानता है कि कामभोगों में गृद्ध-आसक्त पुरुष संसार में परिभ्रमण करता है। इस मनुष्य जन्म में ही संधि - अवसर को जानकर अथवा मनुष्य जन्म में ही ज्ञानादि की प्राप्ति होती है ऐसा जानकर विषय-कषायों से विरक्त हो। वह वीर प्रशंसा के योग्य है जो बद्ध (कर्मों से बंधे हुए या कामभोगों में फंसे हुए) को मुक्त करता है।
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