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________________ भावसंख्या का विवेचन क्योंकि इसमें सर्ववस्तु संग्रहित हो चुकी है। इसके उपरान्त जो वस्तु गिने तो सर्वथापि नहीं है। परन्तु सूत्र (शास्त्र) के अभिप्राय से तो 'उत्कृष्ट अनंत अनंत नहीं' होते हैं । अतः (इसलिए ) सूत्र में जहाँ कहीं भी 'अनंत अनंत' का ग्रहण है, वहाँ 'मध्यम अनंत अनंत' ही समझें । भावसंख्या का विवेचन से किं तं भावसंखा ? भावसंखा - जे इमे जीवा संखगइणामगोत्ताइं कम्माइं वेदेंति । सेत्तं भावसंखा । सेत्तं संखापमाणे । सेत्तं भावप्पमाणे । सेत्तं पमाणे । पमाणे त्ति पयं समत्तं ॥ भावार्थ - भावसंख्या का क्या स्वरूप है ? इस लोक में जो जीव शंख गति - नाम - गोत्र कर्मादि का वेदन करते हैं, वे भाव शंख हैं। यही भावसंख्या है, यही शंख प्रमाण है । इस प्रकार भावप्रमाण विषयक निरूपण परिसमाप्त होता है । यह प्रमाणद्वार की वक्तव्यता है । ४५५ इस प्रकार प्रमाण पद परिसमाप्त होता है । विवेचन - इस सूत्र में शंख के साथ गति, नाम एवं गोत्र का प्रयोग हुआ है। जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - 'गम्यते यथा सा गति' - जिसके द्वारा गमन किया जाता है Jain Education International जाना होता है - उसे गति कहते हैं। यहाँ गति का प्रयोग साधारण रूप से जाने के अर्थ में नहीं है किन्तु एक जीव के मर कर दूसरी योनि में जाने से है। यह गति विन्यास जीव के अपने द्वारा बद्ध कर्मों के अनुसार होता है। कर्मबद्ध, समग्र संसारी जीवों का नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव इन चार गतियों में समावेश होता है। पशु-पक्षी आदि जीव तिर्यंच कहे जाते हैं, उनके अनेक भेद हैं। वे एकेन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक विविध रूपों में विद्यमान रहते हैं। शंख तिर्यंचयोनिक जीव हैं । उसके स्पर्शन व रसन दो इन्द्रियाँ होती हैं, इसलिए वह द्वीन्द्रिय कहा जाता है। नाम शब्द यहाँ आठ कर्मों में से नामकर्म के अर्थ में प्रयुक्त है। नाम कर्म के उदय से जीव विविध प्रकार के शरीर, भिन्न-भिन्न रूप एवं तरह-तरह के अंगोपांग आदि प्राप्त करता है। शंख का रूप एवं शरीर नामकर्म के उदय से जनित है। गोत्र शब्द भी यहाँ आठ कर्मों में से For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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