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________________ विसुज्झमाणए य २ । अहवा सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा पडिवाई य १ अपडिवाई य २ । अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - पडिवाई य १ अपडिवाई य २। अहवा अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - छउमत्थिए य १ केवलिए य २ । सेत्तं चरित्तगुणप्पमाणे । सेत्तं जीवगुणप्पमाणे । सेत्तं गुणप्पमाणे । शब्दार्थ - सामाइयचरित्तगुणप्पमाणे - सामायिकचारित्रगुणप्रमाण, छेओवट्ठावण छेदोपस्थापनीय, सुहुमसंपराय - सूक्ष्म संपराय, इत्तरिए - इत्वरिक, आवकहिए - यावत्कथिक, साइयारे - सातिचार, णिरइयारे - निरतिचार, णिव्विसमाणए - निर्विश्यमानक, णिव्विटुकाइएनिर्विष्टकायिक, छउमत्थिए - छाद्मस्थिक। - चरण प्रमाण भावार्थ - चारित्रगुणप्रमाण का क्या स्वरूप है ? चारित्रगुणप्रमाण पाँच प्रकार का परिज्ञापित हुआ है १. सामायिकचारित्रगुणप्रमाण २. छेदोपस्थापनीय चारित्रगुणप्रमाण ३. परिहारविशुद्धि चारित्रगुणप्रमाण ४. सूक्ष्मसम्पराय चारित्रगुणप्रमाण तथा ५.. यथाख्यात चारित्रगुणप्रमाण । सामायिकचारित्रगुणप्रमाण इत्वरिक एवं यावत्कथिक के रूप में दो प्रकार का परिज्ञापित हुआ हैं। छेदोपस्थापनीय चारित्रगुणप्रमाण के सातिचार और निरतिचार के रूप में दो भेद हैं। परिहारविशुद्धि चारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है १. निर्विश्यमानक और २. निर्विष्टकायिक। सूक्ष्मसंपराय चारित्रगुणप्रमाण संक्लिश्यमानक और विशुद्ध्यमानक के रूप में दो प्रकार का कहा गया है। अथवा सूक्ष्मसंपराय चारित्रगुणप्रमाण प्रतिपाती और अप्रतिपाती के रूप में दो प्रकार का कहा गया है । यथाख्यात चारित्रगुणप्रमाण प्रतिपाती और अप्रतिपाती के रूप में दो प्रकार का प्रतिपादित हुआ है अथवा यथाख्यात चारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का परिज्ञापित हुआ है - १, छाद्यस्थिक और २. केवलिक । यह चारित्रगुणप्रमाण का स्वरूप है। इस प्रकार जीव गुण प्रमाण और गुण प्रमाण विषयक विवेचन परिसमाप्त होता है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में चारित्र प्रमाण का वर्णन है । 'स्वभावे चरणं - रमणं, तन्मयत्वं चारित्रं' जीव का अपने स्वभाव में चरणशील, रमणशील या तन्मय रहना चारित्र है। जब जीव स्वभाव में स्थित होता है तो परभावों का सहज रूप में त्याग हो जाता है | चारित्र विधिमूलकं (Positive) विधा है। उसी का निषेधमूलक रूप विभावों का या समस्त सावद्य Jain Education International - ४१७ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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