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________________ पंचेन्द्रिय जीवों के बद्ध-मुक्त शरीर ३८३ अवसर्पिणी द्वारा अपहत होते हैं। क्षेत्रतः असंख्यात श्रेणियों के जितने हैं। वे श्रेणियाँ प्रतर के असंख्यातवें भाग तुल्य है। इन श्रेणियों की विष्कंभसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। मुक्त वैक्रिय शरीरों के विषय में सामान्य औदारिक शरीरों के समान जानना चाहिए। आहारक शरीरों का विवेचन द्वीन्द्रियों की तरह तथा तैजस-कार्मण शरीरों का वर्णन सामान्य औदारिक शरीरों की भाँति ज्ञातव्य है। मणुस्साणं भंते! केवइया ओरालिय सरीरा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं सिय संखिज्जा सिय असंखिज्जा, जहण्णपए संखेजा, संखिजाओ कोडाकोडीओ, एगूणतीसं ठाणाई, तिजमलपयस्स उवरिं चउजमलपयस्स हेट्ठा, अहव णं छट्ठो वग्गो पंचमवग्गपडुप्पण्णो, अहव णं छण्णउइछेयणगदाइरासी, उक्कोसपए असंखेजा, असंखेजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ उक्कोसपए रूवपक्खित्तेहिं मणुस्सेहिं सेढी अवहीरइ, कालओ असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं, खेत्तओ अंगुलपढमवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण्णं। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियव्वा। भावार्थ - हे भगवन्! मनुष्यों के कितने औदारिक शरीर कहे गए हैं? . हे आयुष्मन् गौतम! मनुष्यों के दो प्रकार के औदारिक शरीर परिज्ञापित हुए हैं - बद्ध और मुक्त। उनमें बद्ध शरीर स्यात् (कदाचित्) संख्यात होते हैं या स्यात् (कदाचित्) असंख्यात होते हैं। जघन्य पद में संख्याता, संख्यात कोड़ाकोड़ी होते हैं। तीन यमल पद से ऊँचे (अधिक) तथा चार यमल पद से नीचे (कम) उनतीस अंकप्रमाण होते हैं। अथवा पंचम वर्ग से षष्ठ वर्ग का गुणन करने से प्राप्त गुणनफल जितने होते हैं अथवा छियानवें छेदनकदायी राशि जितने होते हैं। उत्कृष्ट पद में असंख्यात हैं, कालापेक्षया असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः इनका प्रमाण उत्कृष्ट पद में एक रूप प्रक्षिप्त मनुष्यगत श्रेणी के रिक्त किए जाने .. अपहृत किए जाने जितना है। कालापेक्षया वे असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल में अपहृत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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