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________________ दसनाम - प्रधानपद निष्पन्न नाम २२७ विवेचन - प्रतिपक्षपद निष्पन्न नाम के अन्तर्गत उन शब्दों का उल्लेख है, जो अपने अर्थ के अनुरूप भाव व्यक्त करने में अक्षम किन्तु लोकव्यवहार में अशुभवर्जन की दृष्टि से उन्हें वैसा स्वीकार किया जाता है। जैसे - श्रृंगाली का शब्दकोश में शिवा का अर्थ शुभकारिणी है। किन्तु व्यवहार में गीदड़ी को लोकव्यवहार में, मांगलिक कार्यों में अशुभ माना जाता है। यथा - जब नये ग्राम, नगर आदि बसाए जाते हैं तब यदि गीदड़ी दिखाई दे तो अशुभ होते हुए भी अशुभ दोष वर्जन हेतु उसे शिवा कहा जाता है। ___इसी प्रकार लक्तक (रक्तक) को अलक्तक कहा जाता है। 'रलयोर्साम्यम्' - र और ल की समानता से अलक्तक - अरक्तक का सूचक है। रक्त अशुचि द्योतक है। इस निवारण हेतु लाल महावर को अरक्तक कहा जाता है। इसी प्रकार अन्य शब्दों के साथ भी प्रतिपक्ष पद निष्पन्नता का भाव संगति लिए हुए हैं। नोगौणपदनिष्पन्न से इसे पृथक् मानने का कारण यह है कि नोगौणपद में तो नामकरण का कारण कुन्तादि के प्रवृत्ति निमित्त का अभाव है। जबकि इसमें प्रतिपक्ष धर्म वाचक शब्द मुख्य है। ... ५. प्रधानपद निष्पन्न नाम से किं तं पाहण्णयाए? पाहण्णयाए असोगवणे, सत्तवण्णवणे, चंपगवणे, चूयवणे, णागवणे, पुण्णागवणे, उच्छुवणे, दक्खवणे, सालिवणे। सेत्तं पाहण्णयाए। - शब्दार्थ - असोगवणे - अशोक वन, सत्तवण्णवणे - सप्तपर्ण वन, उच्छुवणे - गन्ने का वन। भावार्थ - प्रधानपद का क्या स्वरूप है? अशोकवन, सप्तपर्णवन, चंपकवन, आम्रवन, नागवन, पुन्नागवन, इक्षुवन, द्राक्षावन, सालवन - ये प्रधानपद नाम सूचक हैं। ...यह प्रधान पद का विवेचन है। ... विवेचन - इस सूत्र में आए हुए शब्द विभिन्न वृक्षों के वनों या उपवनों के सूचक हैं। जिस उपवन में अशोक के वृक्ष बहुलता प्रधानता से हों तथा अन्य जातीय वृक्ष कम हों, बाहुल्य की दृष्टि से उसे 'अशोक वन' कहा जाता है। __ यही तथ्य सूत्र में वर्णित अन्य उदाहरणों में लागू होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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