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________________ क्षयनिष्पन्न १७५ 449 बुद्धे, मुत्ते, परिणिव्वुए, अंतगडे, सव्वदुक्खप्पहीणे। सेत्तं खयणिप्फण्णे। सेत्तं खइए। शब्दार्थ - उप्पण्णणाणदंसणधरे - उत्पन्न ज्ञान दर्शन धर, खीण - क्षीण, चक्खु - चक्षु, परिणिव्वुए - परिनिर्वृत। __ भावार्थ - क्षयनिष्पन्न कितने प्रकार का है? क्षयनिष्पन्न अनेक प्रकार का है - उत्पन्न ज्ञान-दर्शन धर, अर्हत्, जिन, केवली, क्षीणआभिनिबोधिक ज्ञानावरण युक्त, क्षीण श्रुत ज्ञानावरण युक्त, क्षीण अवधिज्ञानावरण युक्त, क्षीणमनः पर्यव ज्ञानावरण युक्त, क्षीण केवल ज्ञानावरण युक्त, अविद्यमान आवरण युक्त, निरावरण युक्त, क्षीणावरण युक्त, ज्ञानावरणीय कर्म विप्रमुक्त, केवलदर्शी, सर्वदर्शी, क्षीणनिद्र, क्षीणनिद्रानिद्र, क्षीणप्रचल, क्षीण प्रचलाप्रचल, क्षीण स्त्यानगृद्धि, क्षीण चक्षुदर्शनावरण युक्त, क्षीण अचक्षुदर्शनावरण युक्त, क्षीण अवधिदर्शनावरण युक्त, क्षीण केवल दर्शनावरण युक्त, अनावरण, निरावरण, क्षीणावरण, दर्शनावरणीयकर्म विप्रमुक्त, क्षीणसातावेदनीय, क्षीणअसाता वेदनीय, अवेदन, निर्वेदन, क्षीण वेदन, शुभाशुभ-वेदनीय कर्म विप्रमुक्त, क्षीण क्रोध यावत् क्षीणलोभ, क्षीणराग, क्षीणद्वेष, क्षीणदर्शन मोहनीय, क्षीण चारित्र मोहनीय, अमोह, निर्मोह, क्षीणमोह, मोहनीय कर्म विप्रमुक्त, क्षीण नरकायुष्क, क्षीणतिर्यंचायुष्क, क्षीण मनुष्यायुष्क, क्षीणदेवायुष्क, अनायुष्क, निरायुष्क, क्षीणायुष्क, आयुकर्म विप्रमुक्त, गति-जाति-शरीर-अंगोपांग-बंधन-संघात-संहननअनेक शरीरवृन्द संघात विप्रमुक्त, क्षीण-शुभनाम, क्षीण सुभगनाम, अनाम, निर्नाम, क्षीणनाम, शुभाशुभनामकर्मविप्रमुक्त, क्षीण-उच्चगोत्र, क्षीणनीचगोत्र, अगोत्र, निर्गोत्र, क्षीणगोत्र, शुभाशुभ गोत्र कर्म विप्रमुक्त, क्षीणदानान्तराय, क्षीणलाभान्तराय, क्षीण भोगान्तराय, क्षीण-उपभोगान्तराय, क्षीण-वीर्यान्तराय, अन्तराय, निरंतराय, क्षीणान्तराय, अन्तराय कर्म विप्रमुक्त, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत, अंतकृत, सर्वदुःखप्रहीण। यह क्षयनिष्पन्न क्षायिक भाव का स्वरूप है। इस प्रकार क्षायिक भाव का निरूपण समाप्त होता है। विवेचन - उपर्युक्त क्षायिक भाव के वर्णन में-आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियों के संक्षिप्त तरीके से ३१ भेद करके उनके क्षय से होने वाले गुणों का वर्णन किया गया है। ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म की क्रमशः पांच व नौ प्रकृतियों के क्षय से होने वाले गुणों को बताकर फिर पांचों प्रकृतियों के पूर्ण क्षय से होने वाले नामों (अर्हत्, जिन, केवली) को एवं नौ प्रकृतियों के पूर्ण क्षय से होने वाले नामों (केवलदर्शी, सर्वदर्शी) को बताया गया है एवं दोनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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