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________________ ८० समवायांग सूत्र आकार तिर्छा लोक एक रज्जु परिमाण लम्बा चौड़ा है। इसके ठीक बीचोबीच में मेरु पर्वत आया हुआ है। इसलिए इसको लोकमध्य कहते हैं। १०. लोकनाभि - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में नाभि शरीर के बीचोबीच होती है इसी प्रकार तिर्छा लोक के ठीक मध्य में आने से मेरु पर्वत को लोक नाभि कहते हैं। ११. अत्थ (अस्त) - जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं। वे मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते हैं। यही बात तत्त्वार्थ सूत्र में कही है। ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ॥ १३ ॥ मेरु प्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ॥ १४ ॥ तत्कृतः कालविभागः ॥ १५ ॥ बहिरवस्थिताः ॥ १६ ॥ जब यहाँ का सूर्य मेरु पर्वत की आड़ में चला जाता है तो उसको अस्त कह देते हैं। वास्तव में सूर्य कभी अस्त होता ही नहीं है। वह तो नित्य गति करता ही रहता है। अपेक्षा से उसको अस्त कह देते हैं। मेरु की आड़ में आ जाने से मेरु को भी अस्त कह दिया है। यहाँ पर कारण में कार्य का उपचार कर दिया है। १२. सूर्यावर्त - सूर्य और चन्द्रमा आदि ज्योतिषी देव मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा किया करते हैं। इसलिये मेरु को सूर्यावर्त कहा है। १३. सूर्यावरण - सूर्य चन्द्रमा आदि मेरु की आड़ में आ जाने से वे ढक जाते हैं इसलिये मेरु को सूर्यावरण कहा है। १४. उत्तर - भरतादि सब क्षेत्रों से मेरु उत्तर दिशा में है इसलिये इसको उत्तर कहते हैं। यथा - जे मंदरस्य पुव्वेण, मणुसा दाहिणेण अवरेणं । जे याऽवि उत्तरेणं, सव्वेसिं उत्तरो मेरु ॥ ४९ ॥ • 'सव्वेसिं उत्तरोमेरु' त्ति (सर्वेषामुत्तरोमेरुः) (आचाराङ्ग १-१-१) अर्थात् - पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में रहने वाले सब जीवों के लिये मेरु पर्वत उत्तर दिशा में रहता है। इसका कारण यह है कि - जिस क्षेत्र में सूर्य जिस दिशा में उदय होता है उसको पूर्व दिशा कहते हैं। उस अपेक्षा से मेरु पर्वत उत्तर दिशा में है। मेरु पर्वत सब पर्वतों में सब से ऊंचा है इसलिये इसको "उत्तम" भी कहते हैं। ऐसा भी कहीं 'पाठ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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