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________________ समवायांग सूत्र अभननननननननननन विवेचन - जल से भरी द्रोणी (नाव) में बैठने पर उससे बाहर निकला जल यदि द्रोण (माप - विशेष ) प्रमाण हो तो वह पुरुष 'मान प्राप्त' कहलाता है । तुला (तराजू) पर बैठे पुरुष का वजन यदि अर्द्धभार प्रमाण हो तो वह उन्मान प्राप्त कहलाता है। शरीर की ऊंचाई उसके अङ्गुल से यदि एक सौ आठ अङ्गुल हो तो वह प्रमाण प्राप्त कहलाता है। चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव इन तरेसठ को त्रिषष्टि श्लाघ्य पुरुष कहते हैं। इनका जीवन प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय होता है। कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने इन महापुरुषों का जीवन वर्णन करने के लिए " त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र" नामक ग्रन्थ की रचना की है। उसमें इनके जीवन का विस्तृत वर्णन किया है। विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए । किसी हिन्दी कवि ने एक कवित्त इस प्रकार कहा है - इगसठ माता ने बावन पिता । नव नव नव ते बारह चोबीसा ॥ उनसठ जीवा ने साठ शरीरा । ४२८ त्रेसट पुरुषा न पुरुष जगीसा ॥ अर्थ - चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव और नौ प्रतिवासुदेव ये तरेसठ महापुरुष हैं। इनके पिता बावन थ्रे । वासुदेव और बलदेव एक ही पिता के सन्तान होते हैं इसलिये तरेसठ में से नौ कम कर दिये तो चौपन्न रहते हैं। सोलहवें, सतरहवें और अठारहवें ये तीन तीर्थङ्कर चक्रवर्ती भी थे इसलिए इनके तीन पिता और कम हुए तो इक्कावन रहे । किन्तु महावीर स्वामी के इस भव में दो पिता थे ऋषभदत्त ब्राह्मण और सिद्धार्थ राजा, इस तरह एक की संख्या और बढ़ गयी इस तरह बावन हो गये। इन तरेसठ महापुरुष के जीव उनसठ थे क्योंकि तीन तीर्थङ्करों के जीव ही चक्रवर्ती थे तथा भगवान् महावीर का जीव इस अवसर्पिणीकाल का त्रिपृष्ठ वासुदेव था इस तरह तरेसठ में से चार कम करने से उनसाठ जीव रहे। भगवान् महावीर स्वामी के जीव के त्रिपृष्ठ वासुदेव का शरीर और महावीर स्वामी का शरीर ऐसे दो शरीर होने से साठ शरीर हुए अर्थात् जीव उनसठ थे और शरीर साठ थे । चौबीस तीर्थङ्कर तो निश्चित रूप से उसी भव में मोक्ष जाते हैं। चक्रवर्ती दो प्रकार के होते हैं। निदान (नियाणा) किये हुए और निदान नहीं किये हुए। निदान किये हुए चक्रवर्ती निदान के कारण राजऋद्धि और भोग सामग्री को नहीं छोड़ सकते हैं। इसलिये वे मर कर नरक गति (सातों में से किसी एक ) में ही जाते हैं। निदान नहीं किए हुए चक्रवर्ती राजऋद्धि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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