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________________ वैमानिक देवों का वर्णन ३७७ प्रश्न - हे भगवन्! अवग्रह किसे कहते हैं ? उत्तर - एक समय शक्रेन्द्र श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दर्शन करने आया तब उसने भगवान् से पूछा-अहो भगवन्! अवग्रह कितने प्रकार का है? तब भगवान् ने उत्तर फरमाया कि - हे शक्रेन्द्र अवग्रह पांच प्रकार का है। उनमें सबसे पहला अवग्रह 'देवेन्द्र अवग्रह' है। तब शकेन्द्र ने कहा कि हे भगवन्! अभी जो साधु साध्वी आदि चतुर्विध संघ विचरण कर रहा है उनके लिये मैं आज्ञा देता हूँ। ऐसा कह कर और भगवान् को वन्दन करके अपने यथा स्थान चला गया। तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अंतेवासी गौतम स्वामी ने अवग्रह के विषय में पूछा तब भगवान् ने इसका विस्तार पूर्वक उत्तर दिया वह इस प्रकार है - अवग्रह पांच हैं - १. देवेन्द्रावग्रह २. राजावग्रह ३. गृहपति अवग्रह ४. सागारी (शय्यादाता) अवग्रह ५. साधर्मिकावग्रह। १. देवेन्द्रावग्रह - लोक के मध्य में रहे हुए मेरु पर्वत के बीचोंबीच रुचक प्रदेशों की एक प्रदेशावली श्रेणी है। इस से लोक के दो भाग हो गये हैं। दक्षिणार्द्ध और उत्तरार्द्ध । दक्षिणार्द्ध का स्वामी शक्रेन्द्र है और उत्तरार्द्ध का स्वामी ईशानेन्द्र है। इसलिये दक्षिणार्द्धवर्ती साधुओं को शक्रेन्द्र की और उत्तरार्द्धवर्ती साधुओं को ईशानेन्द्र की आज्ञा मांगनी चाहिए। - भरत क्षेत्र दक्षिणार्द्ध में है। इसलिये यहाँ के साधु साध्वियों को शक्रेन्द्र की आज्ञा लेनी चाहिए। पूर्वकालवर्ती साधु साध्वियों ने शक्रेन्द्र की आज्ञा ली थी। यही आज्ञा वर्तमान कालीन साधु साध्वियों के भी चल रही है। २. राजावग्रहं - चक्रवर्ती आदि राजा जितने क्षेत्र का स्वामी है। उस क्षेत्र में रहते हुए साधु साध्वियों को राजा की आज्ञा लेना 'राजावग्रह' है। ३. गृहपति अवग्रह - मण्डल का नायक या ग्राम का मुखिया गृहपति कहलाता है। गृहपति से अधिष्ठित क्षेत्र में रहते हुए साधु साध्वियों का गृहपति की अनुमति मांगना एवं उसकी अनुमति से कोई वस्तु लेना गृहपति अवग्रह है। ४. सागारी (शय्यादाता) अवग्रह - घर, पाट, पाटला आदि के लिये गृह स्वामी की आज्ञा प्राप्त करना सागारी अवग्रह है। . ५. साधर्मिक अवग्रह - समान धर्म वाले साधु साध्वियों से उपाश्रय आदि की आज्ञा प्राप्त करना साधर्मिकावग्रह है। साधर्मिक का अवग्रह पांच कोस परिमाण जानना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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