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________________ बारह अंग सूत्र ३३९. से किं तं सिद्धसेणिया परिकम्मे ? सिद्धसेणिया परिकम्मे चोइसविहे पण्णत्ते तंजहा - माउयापयाणि, एयट्ठियपयाणि, पादो?पयाणि, आगासपयाणि, केउभूयं, रासिबद्धं, एगगुणं, दुगुणं, तिगुणं, केउभूयं, पडिग्गहो, संसारपडिग्गहो, णंदावत्तं, सिद्धबद्धं, से तं सिद्धसेणिया परिकम्मे । भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! सिद्ध श्रेणिका परिकर्म किसको कहते हैं? सिद्ध श्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है वे इस प्रकार हैं - १. मातृकापद, २. एकार्थिक पद, ३. पादोष्ट पद, ४. आकाश पद, ५. केतुभूत, ६. राशिबद्ध, ७. एक गुण, ८. द्विगुण, ९. त्रिगुण, १०. केतुभूत, ११. प्रतिग्रह, १२. संसार प्रतिग्रह १३. नन्दावर्त, १४. सिद्धबद्ध। यह सिद्ध श्रेणिका परिकर्म है। ... विवेचन - भावार्थ से स्पष्ट है। . से किं तं मास्ससेणिया परिकम्मे ? मणुस्पसेणिया परिकम्मे चोहसविहे पण्णत्ते तंजहा - ताई चेव माउयापयाणि जाव णंदावत्तं मणुस्सबद्धं, से तं मणुस्ससेणिया परिकम्मे ।। • भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! मनुष्य श्रेणिका परिकर्म किसे कहते हैं? मनुष्य श्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है वे इस प्रकार हैं - सिद्ध श्रेणिका परिकर्म के जो चौदह भेद कहे हैं उनमें से मातृकापद से नन्दावर्त तक १३ भेद तो मनुष्य श्रेणिका परिकर्म के भी वे ही हैं। १४ वां भेद है मनुष्यबद्ध । ये मनुष्य श्रेणिका परिकर्म के भेद कहे गये हैं। विवेचन - भावार्थ से स्पष्ट है। ___ अवसेसा परिकम्माइं पुट्ठाइयाई एक्कारसविहाइं पण्णत्ताई। इच्चेयाई सत्त परिकम्माई ससमइयाई, सत्त आजीवियाई, छ चउक्कणइयाई, सत्त तेरासियाई । एवामेव सपुव्वावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति भवंतीति मक्खायाई । से तं परिकम्माइं। . भावार्थ - बाकी पृष्ट श्रेणिका आदि परिकर्म ग्यारह प्रकार के कहे गये हैं। ये सात परिकर्म हैं। इन सात में से पहले के छह स्वसमय के प्रतिपादक है और सातवां आजीविक मतानुसारी है। नय की अपेक्षा से पहले के छह परिकर्म संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द इन चार नयों के अन्तर्गत हैं। इन सातों परिकर्मों को त्रैराशिक मतानुसारी तीन नयों के अन्तर्गत . . .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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