SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारह अंग सूत्र ३२७ EHIMINAMAMANARTHATANATRAMMAMANNAINAINITAMANNAMANNARAKHANAINTAINMARATHIMITRA divas विद्यातिशय, विविहगुणमहत्था - विविध गुण युक्त महान् अर्थ, अइसयगुणउवसमणाणप्पगार आयरियभासियाणं - अतिशयों से युक्त तथा ज्ञानादि एवं उपशमादि गुणों से युक्त आचार्यों द्वारा कही हुई, वीर महेसीहिं - वीर महिर्षियों द्वारा, अदागंगुटुबाहुअसिमणि ख्रोम आइच्च भासियाणं - आदर्श (कांच) अंगुष्ठ, बाहु, तलवार, मणिरत्न, वस्त्र, सूर्य आदि प्रश्न विद्याओं का, सब्भूयदुगुणप्पभाव णर गणमइ विम्हयकराणं - सद्भूत यानी वास्तविक तत्त्वों का विविध प्रकार से कथन करके मनुष्य समुदाय की बुद्धि को विस्मित करने वाली, अइसयमईयकालसमयदमसमतित्थकरुत्तमस्स ठिइकरण कारणाणं - भूतकाल में अतिशय सम्पन्न शम दमादि गुण युक्त तीर्थङ्कर हुए थे अन्यथा इस प्रकार के सत्य तत्त्वों का कथन ; कौन करता इस तरह की सद् युक्तियों से भूतकाल में हुए तीर्थंकरों का अस्तित्व सिद्ध करने वाली, दुरहिगम दुरवगाहस्स सव्वसव्वण्णुसम्मयस्स अबुहुजणविबोहणकरस्स पच्चक्खयपच्चयकराणं - सूक्ष्म अर्थ जो कि सब सर्वज्ञों को सम्मत है और कठिनता से जानने योग्य और कठिनता से पढ़ने योग्य है, ऐसे सूक्ष्म अर्थ को प्रत्यक्ष के समान प्रतीति कराने वाली, जिणवरप्पणीया - जिनवर प्रणीत ।। भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि - हे भगवन्! प्रश्नव्याकरण किसको कहते हैं अर्थात् प्रश्नव्याकरण सूत्र में क्या भाव फरमाये हैं ? भगवान् फरमाते हैं कि प्रश्न का उत्तर देना प्रश्नव्याकरण कहलाता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में १०८ प्रश्न विद्या अर्थात् अंगुष्ठप्रश्न बाहुप्रश्न आदि मंत्र विद्या, १०८ अप्रश्नविद्या अर्थात् ऐसी विद्या जिसके मन्त्र का विधिपूर्वक जप करने से बिना पूछे ही शुभाशुभ फल बतलाती हो, १०८ प्रश्नाप्रश्न विद्या अर्थात् अंगुष्ठादि प्रश्न के भाव को तथा अभाव को जानकर जो विद्या शुभाशुभ बतलाती है ऐसी विद्या, विद्यातिशय अर्थात् स्तम्भनी, वशीकरणी, विद्वेषीकरणी, उच्चाटनी आदि विद्याओं का कथन किया गया है तथा उपरोक्त विद्याओं को सिद्ध करने वाले साधकों के नागकुमार सुवर्णकुमार आदि भवनपति देवों के साथ तथा यक्षादि के साथ जो तात्त्विक संवाद - प्रश्नोत्तर हुए हैं उनका कथन किया गया है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में स्वसमय अर्थात् स्वसिद्धान्त और परसमय अर्थात् पर मतावलम्बियों के सिद्धान्त की भलि प्रकार विवेचना करने वाले प्रत्येक बुद्ध महर्षियों द्वारा विविध अर्थ वाली गम्भीर भाषा में कही गई अंगुष्ठादि प्रश्न विद्याओं के विविध गुणयुक्त महान् अर्थ कहे गये हैं। आमाँषधि आदि विविध लब्धियाँ (अतिशयों) से युक्त तथा ज्ञानादि एवं उपशमादि गुणों से युक्त आचार्यों द्वारा कही हुई तथा वीर महर्षियों द्वारा बड़े विस्तार के साथ कही हुई, जगत् के लिए हितकारी, आदर्श यानी काच, अंगुष्ठ, बाहु, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy