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________________ - बारह अंग सूत्र ३२५ साधुओं के गुणों का वर्णन किया गया है। तीर्थङ्कर भगवान् का शासन जगत् के लिये हितकारी है। ऋद्धि विशेष वैमानिक देव, असुर - भवनपति और मनुष्यों की परिषदाएं, तीर्थङ्कर भगवन्तों के पास देवों का प्रगट होना। इत्यादि बातों का वर्णन किया गया है और जिस तरह से परिषदाएं तीर्थङ्कर भगवान् की उपासना करती हैं और जिस प्रकार लोक के गुरु तीर्थङ्कर भगवान् उन देव, मनुष्य और असुरों की. परिषदा को धर्म फरमाते हैं और उन तीर्थङ्कर भगवान् के कहे हुए धर्म को सुन कर क्षीणप्रायः कर्म वाले और विषय से विरक्त मनुष्य उदार-प्रधान धर्म को (संयम को) और विविध प्रकार के तप को स्वीकार करते हैं। फिर बहुत वर्षों तक संयम का पालन करके ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने वाले, जिन वचन के अनुकुल यथार्थ कहने वाले, जिन भगवान् के मार्ग का हृदय से अनुसरण करने वाले, जो उत्तम मुनि जहाँ जितने भक्त का छेदन करना चाहिए वहाँ उतने भक्तों का छेदन करके अर्थात् सूत्रानुसार तपस्या करके समाधि को प्राप्त करके और उत्तम ध्यान से संयुक्त होकर अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं और वहाँ अनुत्तर विमानों में जिस प्रकार प्रधान विषय सुखों को प्राप्त करते हैं और वहाँ से चव कर क्रम से जिस प्रकार संयम स्वीकार करके अन्त क्रिया करेंगे अर्थात् सब कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करेंगे इत्यादि सारा अधिकार और इसी प्रकार के दूसरे अधिकार विस्तार पूर्वक कहे गये हैं। अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र में परित्तासंख्याता वाचना हैं, संख्याता अनुयोग द्वार हैं, यावत् संख्याता संग्रहणी गाथाएं हैं। यह अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र अंगों की अपेक्षा नववां अंग सूत्र है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, तीन वर्ग हैं, दस उद्देशनकार्ल हैं, दस समुद्देशन काल हैं, पदों की गिनती की अपेक्षा संख्याता लाख पद अर्थात् ४६ लाख ८ हजार पद कहे गये हैं। संख्याता अक्षर हैं यावत् चरण सत्तरि करणसत्तरि की प्ररूपणा से अनुत्तरौपपातिक सूत्र के भाव कहे जाते हैं। यह अनुत्तरौपपातिक सूत्र का भाव है ॥ ९ ॥ विवेचन - "न सन्ति उत्तराणि प्रधानानि विमानानि येभ्यः, ते अनुत्तराः तेषु उपपतनं उपपातः जन्म येषां ते अनुत्तरौपपातिकाः तद् व्यक्तव्यता प्रतिबद्धा दशाअध्ययनोपलक्षिता अनुत्तरौपपातिकदशाः। अनुत्तराणि विमानानि पञ्च-यथा विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थ सिद्ध। तेषु उपपातः इति अनुत्तरौपपातिकाः।" अर्थ - जिनसे बढ़कर प्रधान कोई विमान नहीं हैं ऐसे विमान पांच हैं। यथा - विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध। इन विमानों में जिनका जन्म होता है उनको अनुत्तरौपपातिक देव कहते हैं। उनके अध्ययन इस सूत्र में होने से इसे अनुत्तरौपपातिक दशा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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