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________________ ३१८ समवायांग सूत्र "अन्तो-भवान्तःकृतो-विहितो यैस्तेऽन्तकृतास्तद् वक्तव्यता प्रतिबद्धा दशाः । दशाध्ययनरूपा ग्रन्थपद्धतय इति अन्तकृतदशाः ।" अर्थ - जिन महापुरुषों ने भव का अन्त कर दिया है, वे 'अन्तकृत' कहलाते हैं। उन महापुरुषों का वर्णन जिन दशा अर्थात् अध्ययनों में किया हो, उन अध्ययनों से युक्त शास्त्र को 'अन्तकृत दशा' कहते हैं। इस सूत्र के प्रथम और अन्तिम वर्ग के दस-दस अध्ययन होने से इसको "दशा" कहा है। कोई कोई "अन्तकृत" शब्द का ऐसा अर्थ करते हैं कि- 'जो महापुरुष अन्तिम श्वासोच्छ्वास में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये हैं उन्हें अन्तकृत कहते हैं।' किन्तु यह अर्थ शास्त्र-सम्मत नहीं है। क्योंकि केवलज्ञान होते ही तेरहवाँ गुणस्थान प्राप्त होता है। १३ वें गुणस्थान का नाम 'सयोगी केवली गुणस्थान' है। इस गुणस्थान में योगों की प्रवृत्ति रहती है। इसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन करोड़ पूर्व की है। तेरहवें गुणस्थान के अन्त में सब योगों का निरोध कर देते हैं। इसके बाद साधक १४वें गुणस्थान में जाते हैं। इसलिये इस गुणस्थान का नाम अयोगी केवली गुणस्थान है। इसकी स्थिति अ, इ, उ, ऋ, लु ये पांच ह्रस्व अक्षर उच्चारण करने जितनी है। इसलिये अन्तिम श्वासोच्छ्वास में केवलज्ञान उत्पन्न होने की बात कहना ठीक नहीं है। केवलज्ञान होने के बाद १२वें गुणस्थान में कुछ ठहर कर उसके बाद 'अयोगी-केवली' नामक १४ वाँ गुणस्थान प्राप्त होता है। अत: टीकाकार ने जो अर्थ किया है, वही ठीक है। इस प्रकार भव (चतुर्गति रूप संसार) का अन्त करने वाली महान् आत्माओं में से कुछ महान् आत्माओं के जीवन का वर्णन इस सूत्र में दिया गया है इसलिये इसे अन्तकृत दशा सूत्र कहते हैं। अन्तकृत दशा आठवाँ अङ्ग सूत्र है इसमें आठ वर्ग हैं। अध्ययनों के समूह को 'वर्ग' कहते हैं। इसमें ९० महापुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन है। . अन्तकृतदशाङ्ग सूत्र की संक्षिप्त तालिका १. वर्गात्मक तालिका - वर्ग आठ हैं उनमें क्रमशः अध्ययन इस प्रकार हैं - पहले में १०, दूसरे में ८, तीसरे में १३, चौथे में १०, पांचवें में १०, छठे में १६, सातवें में १३, आठवें में १०। २. शासनात्मक तालिका - बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि के शासन में ५१ साधक हुए। शासनपति २४ वें तीर्थङ्कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शासन में ३९ साधक हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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