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________________ प्रकीर्णक समवाय अङ्गुल होती है और तीर्थङ्कर भगवन्तों की अपेक्षा सिद्धों की जघन्य अवगाहना चार हाथ सोलह अङ्गुल होती है । उववाई सूत्र की गाथाओं में यद्यपि इसको मध्यम अवगाहना कह दिया है किन्तु गाथाओं से ऊपर गद्य पाठ में तीर्थङ्कर भगवन्तों की जघन्य अवगाहना सात हाथ की कही है। इस अपेक्षा से तीर्थङ्करों के सिद्ध अवस्था की जघन्य अवगाहना चार हाथ सोलह अङ्गुल स्पष्ट हो जाती है। इसलिये सिद्ध भगवन्तों की जघन्य अवगाहना ( सामान्य केवली की अपेक्षा और तीर्थङ्कर भगवान् की अपेक्षा से) दो प्रकार की कहनी चाहिए । उत्कृष्ट अवगाहना (सामान्य केवली और तीर्थङ्कर दोनों की अपेक्षा) पांच सौ धनुष शरीर की ऊँचाई की अपेक्षा सिद्ध भगवन्तों की उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष तथा एक धनुष का २ भाग अर्थात् ३२ अङ्गुल (एक हाथ आठ अङ्गुल) की होती है। एक हाथ आठ अङ्गुल से कुछ अधिक से लेकर ३३३ धनुष ३२ अङ्गुल से कुछ कम तक सब मध्यम अवगाहना कहलाती है । निष्कर्ष यह है कि सामान्य केवलियों की अपेक्षा जघन्य अवगाहना एक हाथ आठ अङ्गुल और तीर्थङ्कर भगवन्तों की अपेक्षा जघन्य अवगाहना चार हाथ सोलह अङ्गुल तथा उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष ३२ अङ्गुल की होती है। इस के बीच की सब मध्यम अवगाहना कहलाती है । Jain Education International पासणं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्भुट्ठ सयाई चोद्दसपुव्वीणं संपया होत्था । अभिणंदणे णं अरहा अद्भुट्ठाई धणुसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ३५० ॥ भावार्थ - पुरुषादानीय-पुरुषों में आदरणीय भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के ३५० चौदह पूर्वधारी साधु थे। भगवान् अभिनन्दन स्वामी के शरीर की ऊंचाई ३५० धनुष थी ॥ ३५० ॥ संभवे णं अरहा चत्तारि धणुसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं होत्था । सव्वे वि णं णिसढ णीलवंता वासहर पव्वया चत्तारि चत्तारि जोयण सयाई उड्डुं उच्चत्तेणं, चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता । सव्वे वि णं वक्खार पव्वया णिसढ णीलवंत वासहर पव्वया चत्तारि चत्तारि जोयण सयाइं उड्डुं उच्चत्तेणं, चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता । आणय पाणएसु दोसु कप्पेसु चत्तारि विमाणसया पण्णत्ता । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुरम्म लोम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ॥ ४०० ॥ कठिन शब्दार्थ - वक्खार पव्वया वक्षस्कार पर्वत, सदेवमणुयासुरम्मि देव और मनुष्यों के, लोगम्मि - लोक में, वाए - वाद में, अपराजियाणं- अपराजित । - For Personal & Private Use Only २७७ PEEEEEEEENDEN - www.jalnelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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