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________________ २४८ समवायांग सूत्र बयासीवां समवाय जंबूहीवे दीवे बासीयं मंडलसयं जं सूरिए दुक्खुत्तो संकमित्ता णं चार चरइ तंजहा-णिक्खममाणे य पविसमाणे य। समणे भगवं महावीरे वासीइं राइदिएहिं वीइक्कंतेहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए । महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेढिल्ले चरमंते एस णं बासीइं जोयण सयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते एवं रुप्पिस्स वि ॥ ८२ ॥ कठिन शब्दार्थ - बासीयं मंडलसयं - १८२ मांडलों को, दुक्खुत्तो - दो बार, संकमित्ता - संक्रमण करके-उल्लंघन करके, चारं चरइ - भ्रमण करता है, गब्भाओ ग - गर्भ से गर्भ अर्थात् देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशला रानी की कुक्षि में, साहरिए - संहरण किया गया, सोगंधियस्स कंडस्स - सौगंधिक काण्ड का । भावार्थ - इस जम्बूद्वीप में सूर्य १८२ मांडलों को दो बार उल्लंघन करके भ्रमण करता है। जम्बूद्वीप में ६५ आभ्यन्तर मांडले हैं और लवण समुद्र में ११९ बाह्य मांडले हैं, कुल १८४ मांडले हैं जिनमें निषध पर्वत का प्रथम मंडल है और लवण समुद्र का अन्तिम मंडल है। इन दोनों को सूर्य एक बार ही स्पर्श करता है। शेष १८२ मांडलों को निकलते समय और प्रवेश करते समय दो दो बार स्पर्श करता है। ८२ रात दिन व्यतीत हो जाने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशला रानी की कुक्षि में संहरण किया गया था। महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर के चरमान्त से रत्नप्रभा के सौगन्धिक काण्ड का नीचे के चरमान्त तक ८२०० योजन का अन्तर कहा गया है। रत्नप्रभा नरक के तीन काण्ड हैं, उनमें से प्रथम रत्नकाण्ड के १६ विभाग हैं। प्रत्येक विभाग एक एक हजार योजन का है। इसलिए आठवें सौगन्धिक काण्ड तक ८००० योजन हुए और २०० योजन का महाहिमवान् पर्वत है। यह सब मिला कर ८२०० योजन हुए। इसी तरह रुक्मी पर्वत और सौगन्धिक काण्ड में ८२०० योजन का अन्तर समझना चाहिए ॥ ८२ ॥ विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जीव ने मरीचि के भव में कुल का मद (अभिमान) किया था। उसके कारण इस भव में ब्राह्मणेकुण्डपुर के निवासी ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा के गर्भ में आये थे। ८२ रात-दिन पर्यन्त वहाँ रहे। फिर शक्रेन्द्र के दूत हरिनैगमेषी देव द्वारा गर्भ संहरण किया गया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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