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________________ समवाय ६५ २१७ भावार्थ - इस जम्बूद्वीप में पैंसठ सूर्य मण्डल कहे गये हैं। भगवान् महावीर स्वामी के सातवें गणधर श्री मौर्यपुत्र पैंसठ वर्ष तक गृहस्थवास में रह कर, फिर मुण्डित होकर गृहस्थवास छोड़ कर प्रवजित हुए थे। सौधर्म देवलोक के बीच में सौधर्मावतंसक विमान है, उसके प्रत्येक दिशा में पैंसठ पैंसठ नगर के आकार वाले विशिष्ट स्थान कहे गये हैं, जिनको भोम कहते हैं ॥६५॥ विवेचन - प्रश्न - भगवान् महावीर स्वामी के छठे गणधर मण्डित पुत्र और सातवें गणधर मौर्यपुत्र को कई लोग एक माता और भिन्न-भिन्न पिता की सन्तान मानते हैं। सो क्या यह ठीक है? उत्तर - टीकाकार आदि दोनों गणधरों को सहोदर किन्तु भिन्न-भिन्न पिता के पुत्र होना मानते हैं। वे लिखते हैं कि - 'मण्डित पुत्र के जन्म के बाद उसका पिता काल कर गया। उसके बाद उसकी माता ने पुनर्विवाह (नाता) किया जिससे मौर्यपुत्र की उत्पत्ति हुई।' किन्तु यह लेख समवायाङ्ग सूत्र के मूल पाठ से विरुद्ध है। समवायाङ्ग सूत्र के तीसवें समवाय में मण्डित पुत्र के विषय में लिखा है कि वे तीस वर्ष की दीक्षा पर्याय पाल कर सिद्ध हुए और ८३ वें समवाय में उनकी सर्व आयु ८३ वर्ष की लिखी है। इन दोनों पाठों से इनका गृहस्थ वास त्रेपन वर्ष का साबित होता है और इस पैंसठवें समवाय के मूल पाठ में मौर्यपुत्र के विषय में लिखा है कि - वे ६५ वर्ष गृहस्थवास में रह कर दीक्षित हुए। सभी गणधरों की दीक्षा एक ही दिन हुई। इस पर विचार करने से टीकाकार आदि का उल्लेख गलत सिद्ध होता है क्योंकि एक ही माता से जन्मे हुए दो पुत्रों की दीक्षा एक साथ हुई तब दीक्षा के दिन बड़े भाई मण्डित पुत्र की आयु ५३ वर्ष और छोटे भाई मौर्यपुत्र की आयु ६५ वर्ष कैसे हो सकती है। इसीलिए टीका आदि का उल्लेख विश्वसनीय नहीं है। स्वयं टीकाकार इस विषय में शंकाशील हैं। मण्डित पुत्र मौर्य नामक गांव के निवासी धनदेव ब्राह्मण के पुत्र थे। माता का नाम विजया था। मौर्यपुत्र के पिता का नाम मौर्यग्राम निवासी मौर्य ब्राह्मण था और माता का नाम विजया था। इन दोनों गणधरों की माताओं का नाम विजया होने से टीकाकार को यह सन्देहं हुआ है, किन्तु यह उनका भ्रम है। क्योंकि अनके व्यक्तियों के माता का नाम विजया हो सकता है किन्तु वे सब माताएँ भिन्न भिन्न होती हैं। इसलिये इन दोनों गणधरों की माताएँ भी भिन्न भिन्न थी। ये दोनों सहोदर (सगे-एक माता से जन्मे हुए) भाई नहीं थे। गणधर सब जातिवन्त होते हैं। इसलिये उनकी माता एक पति के मर जाने पर दूसरा पति कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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