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________________ समवायांग सूत्र की स्थिति होती है। उस स्थिति को शास्त्रकार अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति कहते हैं । जैसे कि- सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नरकेन्द्र में तेतीस सागरोपम की ही स्थिति है कम नहीं । इसी प्रकार सर्वार्थ सिद्ध विमान में भी तैतीस सागरोपम की ही स्थिति होती है। १६८ प्रश्न- इसे उत्कृष्ट स्थिति ही क्यों न कह दी जाय ? उत्तर - जहाँ जघन्य स्थिति होती है उस जघन्य की अपेक्षा उत्कृष्ट स्थिति बताई जाती है । परन्तु जहाँ जघन्य स्थिति नहीं है तो किस की अपेक्षा से उत्कृष्ट बताई जाय ? जैसे - देवदत्त नामक व्यक्ति के तीन लड़के हों तो छोटा, मझला और बड़ा ऐसे कहा जा सकता है। परन्तु देवदत्त के एक ही लड़का हो तो किससे छोटा व किससे बड़ा कहा जाय ? इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में भी समझना चाहिये। अतः एक ही प्रकार की स्थिति को " अजघन्य अनुत्कृष्ट" शब्द से बतलाया गया है। तेतीस सागरोपम से अधिक किसी भी जीव की स्थिति नहीं होती। इसलिये स्थिति सम्बन्धी समवाय भी यहाँ पूरा कर दिया गया है। इसके आगे . स्थिति का बोल नहीं चलता है। भवसिद्धिक जीवों के भवग्रहण के बोल भी तेतीस तक ही दिये गये हैं। इससे आगे बोल नहीं दिये गये हैं । भवसिद्धिक जीव इससे भी अधिक भव करने वाले होते हैं फिर आगे के बोल क्यों नहीं दिये इसका रहस्य या तो बहुश्रुत ज्ञानी जानते हैं अथवा केवली भगवान् जानते हैं। यथा "तत्त्वं तु बहुश्रुता विदन्ति" अथवा "तत्त्वं तु केवलि गम्यम्" - चौतीसवां समवाय चोत्ती बुद्धाइसेसा पण्णत्ता तंजहा - १. अवट्ठिए केसमंसुरोमणहे २. णिरामया णिरुवलेवा गायलट्ठी ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासणिस्सासे ५. पच्छपणे आहार णीहारे अदिस्से मंस चक्खुणा ६. आगासगयं चक्कं ७. आगासगयं छत्तं ८. आगासगयाओ सेयवरचामराओ ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं १०. आगासगओ कुडभीसहस्स परिमंडियाभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ ११. जत्थ जत्थ वि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठति वा णिसीयंति वा तत्थ तत्थ वि य णं तक्खणादेव संछण्ण पत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ १२ ईसिं पिटुओ मउडठाणम्मि तेयमंडलं अभिसंजायइ अंधकारे वि य णं दस दिसाओ पभासेइ १३. बहुसमरमणिजे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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