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________________ समवाय २२ १०७ MORRHMANTHARA MMARRMANMANTHARTHATANTARNAMANARTHATANTRARASIMHARNAMAARI अच्चुयवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा बावीसाए अद्धमासाणं (अद्धमासेहिं) आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा । तेसिणं देवाणं बावीसाए वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ । संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बावीसं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ २२ ॥ .. कठिन शब्दार्थ - परीसहे - परीषह, दिगिंछा - बुभुक्षा-क्षुधा-भूख, पिवासा - पिपासा-प्यास, सीय - शीत, उसिण - उष्ण, दंसमसग - दंशमशक-डांस, मच्छर, खटमल आदि, अरइ - अरति, इत्थी. - स्त्री, चरिया - चर्या, णिसीहिया - निषद्या, सिज्जा - शय्या, अक्कोस - आक्रोश, वह - वध, जायणा - याचना, तणफास - तृण स्पर्श, जल्ल - मल (मैल), सक्कारपुरक्कार - सत्कार पुरस्कार, पण्णा - प्रज्ञा, अण्णाण - अज्ञान, ससमयसुत्त परिवाडीए - स्व समय सूत्र परिपाटी यानी स्वसिद्धान्त की परिपाटी के अनुसार, छिण्णछेय णइयाई - छिन्न छेद नय वाले, आजीविय-सुत्त परिवाडीए - आजीविक सूत्र परिपाटी यानी गोशालक मतानुसार, अछिण्णछेय णइयाई - अछिन्न छेद नय वाले, तेरासिय सुत्त परिवाडीए - त्रैराशिक सूत्र परिपाटी के अनुसार, तिक णइयाई - त्रिक नयिक-तीन नय वाले, चउक्क णइयाई - चतुष्क नयिक - चार नय वाले, पोग्गल परिणामे - पुदगल परिणाम। - भावार्थ - परीषह - आपत्ति आने पर भी संयम में स्थिर रहने के लिए तथा कर्मों की निर्जरा के लिए ज़ो. शारीरिक तथा मानसिक कष्ट साधु साध्वियों को समभाव पूर्वक सहने चाहिए, उन्हें परीषह कहते हैं। वे बाईस .हैं। यथा - १.भूख का परीषह - संयम की मर्यादा के अनुसार निर्दोष आहार न मिलने पर मुनियों को भूख का कष्ट सहना चाहिए किन्तु सदोष आहार न लेना चाहिए। २. प्यास का परीषह ३. शीत - ठंड का परीषह ४. उष्ण - गर्मी का परीषह ५. डांस, मच्छर, खटमल आदि का परीषह ६. अचेल परीषह - मर्यादित वस्त्र रखने से होने वाला कष्ट । ७. अरति परीषह - संयम मार्ग में कठिनाइयों के आने पर उसमें मन न लगे और संयम के प्रति अरति (अरुचि) उत्पन्न हो तो धैर्य पूर्वक उसमें मन लगाते हुए अरति को दूर करना चाहिए। ८. स्त्री परीषह - स्त्रियों द्वारा होने वाला कष्ट ९. चर्या परीषह - विहार में होने वाला कष्ट १०. निषद्या परीषह - स्वाध्याय आदि करने की भूमि ऊँची नीची हो तो वहाँ बैठने से होने वाला कष्ट । ११. शय्या परीषह - रहने का स्थान तथा सोने की जगह अनुकूल न होने से होने वाला कष्ट। १२. आक्रोश परीषह - किसी के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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