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________________ - समवाय २० - ९९ भावार्थ - बीस असमाधि स्थान कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. दवदवचारी - द्रुतद्रुतचारी-जल्दी जल्दी चलना। २. बिना पूंजे चलना, बैठना, सोना आदि क्रियाएं करना। ३. अच्छी तरह नहीं पूंजना। ४. मर्यादा से अधिक शय्या आसन आदि रखना। ५. रत्नाधिक यांनी ज्ञान दर्शन चारित्र में अपने से बड़े साधु और आचार्य आदि पूजनीय पुरुषों के सामने बोलकर उनका अपमान करना। ६. स्थविर साधुओं की अवज्ञा करना, उनकी घात चिन्तवना। ७. जीवों की घात करना, आधाकर्मादि आहार लेना। ८. प्रतिक्षण बात बात में क्रोध करना। ९. बहुत अधिक क्रोध करना। १०. पीठ पीछे दूसरों की चुगली करना, निन्दा करना ११. मन में शङ्का होते हुए भी बारबार निश्चयकारी भाषा बोलना १२. नवीन क्लेश खड़ा करना। १३. क्षमा किये हुए तथा उपशान्त हुए क्लेश को फिर से खड़ा करना। १४. सचित्त रज लगे हुए हाथ पैरों को बिना पूंजे सोना, बैठना आदि क्रियाएँ करना। १५. अकाल में शास्त्रों की स्वाध्याय करना। १६. आक्रोशादि वचनों का प्रयोग कर कलह उत्पन्न करना। १७. रात को पहले पहर के बाद ऊँचे स्वर से बातचीत या स्वाध्याय करना अथवा गृहस्थों के समान सावध भाषा बोलना १८. साधु समुदाय में फूट डालने वाले वचन कहना। १९. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ न कुछ खाते रहना अर्थात् सारे दिन मुंह चलाते रहना। २०. एषणा समिति में ध्यान न रखना। इन बीस कारणों से असमाधि उत्पन्न होती है। बीसवें तीर्थङ्कर श्री मुनिसुव्रत स्वामी बीस धनुष के ऊंचे थे। सभी अर्थात् सातों नरकों के नीचे सब घनोदधि बीस हजार योजन मोटा कहा गया है। देवों के राजा, देवों के इन्द्र प्राणतेन्द्र के बीस हजार सामानिक देव हैं। नपुंसक रूप से वेदे जाने वाले मोहनीय कर्म की बन्ध स्थिति बन्ध के समय से लेकर बीस कोडाकोडी सागरोपम की कही गई है। नववें प्रत्याख्यान पूर्व की बीस वस्तु (अध्ययन) हैं। उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दोनों मिला कर बीस कोडाकोडी सागरोपम का एक कालचक्र होता है। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति बीस पल्योपम की कही गई है। तमःप्रभा नामक छठी नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति बीस सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति बीस पल्योपम की कहीं गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति बीस पल्योपम की कही गई है। प्राणत नामक दसवें देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति बीस सागरोपम की कही गई है। आरण नामक ग्यारहवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति बीस सागरोपम की कही गई है। आरण देवलोक के अन्तर्गत सात, विसात, सुविसात, सिद्धार्थ, उत्पल, भित्तिल, तिगिच्छ, दिशासौवस्तिक, प्रलम्ब, रुचिर, पुष्प, सुपुष्प, पुष्पावत, पुष्पप्रभ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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