SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ समवायांग सूत्र जम्बूद्वीप का गणित करने में एक योजन के उन्नीसवें भाग को कला कहा गया है। श्री महावीरस्वामी, श्री पार्श्वनाथस्वामी, श्री अरिष्ट नेमिनाथ स्वामी, श्री मल्लिनाथ स्वामी और वासुपूज्यस्वामी, इन पांच तीर्थङ्करों को छोड़ कर बाकी उन्नीस तीर्थङ्करों ने अगारवास में रह कर अर्थात् राजपाट भोग कर फिर मुण्डित होकर दीक्षा ली थी। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति उन्नीस पल्योपम की कही गई है। तमःप्रभा नामक छठी नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति उन्नीस सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति उन्नीस पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति उन्नीस पल्योपम की कही गई है। आणत नामक नववे देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति उन्नीस सागरोपम की कही गई है। प्राणत नामक दसवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति उन्नीस सागरोपम की कही गई है। प्राणत देवलोक के अन्तर्गत आणत, प्राणत, नत, विनत, घन, शुषिर, इन्द्र, इन्द्रकान्त, इन्द्रोत्तरावतंसक, इन नौ विमानों में जो देव देव रूप से उत्पन्न होते हैं। उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति उन्नीस सागरोपम् की कही गई है। वे देव उन्नीस पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और . बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को उन्नीस हजार वर्षों से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उन्नीस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ १९ ॥ विवेचन - बारह अङ्ग सूत्रों में से छठे अङ्ग सूत्र का नाम ज्ञाताधर्म कथाङ्ग सूत्र है। इस के दो श्रुतस्कन्ध हैं। ज्ञाता और धर्म कथा। पहले श्रुतस्कन्ध में उन्नीस अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक-एक कथा है और अन्त में उस कथा (दृष्टान्त- उदाहरण) से मिलने वाली शिक्षा बतलाई गयी है। इन उन्नीस ही कथाओं का हिन्दी अनुवाद श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह बीकानेर के पांचवें भाग में दिया गया है (अगरचन्द भैरोदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था मरोटी सेठियों का मोहल्ला बीकानेर-राजस्थान)। जिज्ञासु साधक वहाँ देख सकते हैं। दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम धर्म कथा है। इसमें २०६ अध्ययन हैं। तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान् पुरुषादानीय पार्श्वनाथ की २०६ आर्याएँ विराधक हो गयी थी। वे कालधर्म को प्राप्त होकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी तथा पहले दूसरे देवलोक के इन्द्रों की इन्द्राणियाँ (अग्रमहिषियाँ) बनी हैं। इन अध्ययनों का हिन्दी अनुवाद श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के चौथे भाग में दिया गया है। चौबीस तीर्थङ्करों में से सोलह तीर्थङ्कर माण्डलिक राजा बने। सोलहवें शान्तिनाथ सतरहवें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy