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उत्तराध्ययन सूत्र - चौबीसवाँ अध्ययन 000000000NOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOD
कठिन शब्दार्थ - ईरिया-भासे-सणादाणे - ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपणा समिति, उच्चारेसमिई - उच्चार प्रस्रवण समिति, मणगुत्ती - मन गुप्ति, वय गुत्ती - वचन गुप्ति, अट्ठमा - आठवीं, कायगुत्ती - काय गुप्ति। ___ भावार्थ - ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभांडमात्र-निक्षेपणा समिति और उच्चार-प्रस्रवण-जल्ल-मल-सिंघाण-परिस्थापनिका समिति ये पाँच समितियाँ हैं। मन गुप्ति, वचन गुप्ति और कायगुप्ति आठवीं है। ये आठ प्रवचन माताएँ हैं।
एयाओ अट्ठ समिईओ, समासेण वियाहिया। दुवालसंगं जिणक्खायं, मायं जत्थ उ पवयणं॥३॥
कठिन शब्दार्थ - एयाओ - ये, समासेण - संक्षेप से, वियाहिया - कही गई है, दुवालसंगं - द्वादशांग रूप, जिणक्खायं - जिनेन्द्र कथित, मायं - समाया हुआ-अंतर्भूत है, पवयणं - प्रवचन।
भावार्थ - ये पाँच समिति और तीन गुप्ति रूप अष्ट प्रवचन-माता संक्षेप से कही गई है। जिनेन्द्र भगवान् द्वारा कथित द्वादशांग रूप प्रवचन इन्हीं में समाया हुआ है, इसलिए ये 'प्रवचनमाता' कहलाती है।
विवेचन - ये आठ समितियाँ यहाँ संक्षेप में बतलाई गई है। शास्त्र विधि के अनुसार आत्मा की प्रवृत्ति गुप्तियों में भी है। इसलिए शास्त्रकार ने यहाँ समिति शब्द से गुप्तियों को भी ग्रहण कर लिया है। इसलिए आठ समिति कही गई है। तीर्थंकर भगवान् द्वारा प्रतिपादित द्वादशांग रूप प्रवचन का इन समितियों में अन्तर्भाव हो जाता है। क्योंकि समिति गुप्ति चारित्र रूप है और जहाँ चारित्र है वहां सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन अवश्य है। अतः ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप द्वादशांग का समिति गुप्ति में अन्तर्भाव हो जाता है, ऐसा कहा गया है। जिसमें समावेश हो जाता है वह माता कहलाती है। द्वादशाङ्ग का इसमें समावेश हो जाने से समिति गुप्ति को प्रवचन की माता कहा है। __ जैसे द्रव्य माता, पुत्र को जन्म देती है वैसे ही भाव माता समिति गुप्ति रूप हैं, प्रवचन को जन्म देती है। माता की तरह ये प्रवचन की सब प्रकार से रक्षा भी करती है। जैसे माता पुत्र के प्रति वात्सल्य रखती है वैसे ही ये आठ प्रवचन माताएं साधु जीवन की कल्याणकारिणियाँ हैं। इसीलिये जिनेन्द्रों ने इन्हें श्रमण की भी माताएं बताई हैं।
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