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केसिगोयमिज्जंणामंतेवीसइमंअज्झयणं केशि-गौतमीय नामक तेईसवाँ अध्ययन
केशि-गौतमीय नामक इस अध्ययन में भगवान् पार्श्वनाथ के संतानीय श्रमण केशीकुमार एवं भगवान् महावीर स्वामी के प्रथम गणधर गौतमस्वामी के मध्य हुई आचार संबंधी चर्चा का सुंदर वर्णन है। चातुर्याम धर्म और पंच महाव्रतात्मक धर्म की चर्चा करते हुए केशीकुमार श्रमण के अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का गौतमस्वामी द्वारा दिये गये सटीक उत्तरों का बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्द्धक वर्णन किया गया है। इस अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार,है -
तीर्थंकर पार्श्वनाथ जिणे पासित्ति णामेणं, अरहा लोगपूइओ। . संबुद्धप्पा य सव्वण्णू, धम्म-तित्थयरे जिणे॥१॥
कठिन शब्दार्थ - जिणे - जिन-रागद्वेष के विजेता, पासित्ति णामेणं - पार्श्व नाम के, अरहा - अर्हन्, लोगपूइओ - लोक पूजित, संबुद्धप्पा - सम्बुद्धात्मा, सव्वण्णू - सर्वज्ञ, धम्मतित्थयरे - धर्म तीर्थ के प्रवर्तक।
भावार्थ - राग-द्वेष को जीतने वाले, नरेन्द्र देवेन्द्रों से पूजित एवं वन्दित, लोक में पूजित, तत्त्वज्ञान से युक्त आत्मा वाले, सर्वज्ञ, धर्म - तीर्थ की स्थापना करने वाले समस्त कर्मों को जीतने वाले पार्श्वनाथ नाम के भगवान् थे।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में भगवान् पार्श्वनाथ के निम्न सात विशेषण दिये गये हैं - १. जिणे - जिन - परीषह उपसर्गों के विजेता अथवा रागद्वेष के विजेता। २. अरहा - अर्हन् - देव-दानव-मानवों के द्वारा पूजनीय। ३. लोगपूइओ - लोक पूजित - तीन लोक द्वारा अर्चित। ४. संबुद्धप्पा - संबुद्धात्मा - स्वयं बुद्ध तत्त्वज्ञान से युक्त आत्मा। ५. सव्वण्णू - सर्वज्ञ - त्रिकाल त्रिलोक की बातों को सम्पूर्ण जानने वाले।
६. धम्मतित्थयरे - धर्म तीर्थंकर - धर्मतीर्थ रूप है, उस धर्म तीर्थ के संस्थापक या प्रवर्तक।
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