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जीवाजीव विभक्ति - मनुष्यों का स्वरूप
कठिन शब्दार्थ - सम्मुच्छिमाण - सम्मूर्च्छिम, भेओ भेद, लोगस्स लोक के,
एगदेसम्म - एक देश में ।
भावार्थ ये ही भेद सम्मूर्च्छिम मनुष्यों के होते हैं ऐसा कहा गया है। वे सभी मनुष्य लोक के एक देश में कहे गये हैं।
विवेचन प्रश्न - सम्मूर्च्छिम मनुष्य किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं और उनका उत्पत्ति स्थान कहाँ हैं?
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उत्तर - बिना माता-पिता के उत्पन्न होने वाला अर्थात् स्त्री-पुरुष के समागम के बिना ही उत्पन्न होने वाला जीव सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहलाता है । ४५ लाख योजन परिमाण मनुष्य क्षेत्र में अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में, पन्द्रह कर्म भूमि, तीस अकर्मभूमि और छप्पन अन्तरद्वीपों में गर्भज मनुष्य रहते हैं। उनके मल मूत्र आदि में सम्मूर्च्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। उनके उत्पत्ति के स्थान १४ हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं -
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5.
१. उच्चारेसु - विष्ठा में २. पासवणेसु - मूत्र में ३. खेलेसु - कफ में ४. सिंघाणेसुनाक के मैल में ५. वंतेसु - वमन में ६. पित्तेसु - पित्त में ७. पूएसु - पीप, राध और दुर्गन्ध युक्त बिगड़े घाव से निकले हुए खून में सोणिएस - शोणित- खून में ६. सुक्केसुशुक्र - वीर्य में १०. सुक्कपुग्गल परिसाडेसु - वीर्य आदि के सूखे हुए पुद्गलों के गीले होने में ११. विगय (ववगय) जीव कलेवरेसु जीव रहित शरीर में अर्थात् मरे हुए शरीर में १२. थीपुरिस संजोएस स्त्री-पुरुष के संयोग में अर्थात् मैथुन सेवन करने में १३. णगरणिद्धमणेसु नगर की मोरियाँ ( गटरों) में १४. सव्वेसु असुइट्ठाणेसु - उपरोक्त तेरह बोल अथवा उससे कम बोल एक जगह इकट्ठे होने पर। जैसा कि अस्पतालों में खून, रस्सी, टट्टी, पेशाब आदि इकट्ठे हो जाते हैं। उनमें सम्मूर्च्छिम मनुष्य पैदा होते हैं।
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मुंह में जो थूक है उसमें सम्मूर्च्छिम मनुष्य पैदा नहीं होते। थूक को तो अमी (अमृत) कहते हैं। इससे तो कई बीमारियां ठीक होती हैं इसलिए 'मुँहपत्ति बांधने में थूक लगता है और उसमें सम्मूर्च्छिम मनुष्य पैदा होते हैं' यह कहना आगम विरुद्ध है।
सम्मूर्च्छिम मनुष्य की अवगाहना अङ्गुल के असंख्यातवें भाग परिमाण होती है। ये असंज्ञी, एकान्त मिथ्यादृष्टि और अज्ञानी होते हैं। इनका आयुष्य अन्तर्मुहूर्त का होता है। ये अपर्याप्त अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। (पण्णवणा पद १, अनुयोगद्वार )
संत पप्पणाइया, अपज्जवसिया विय।
ठि पडुच्च साइया, सपज्जवसिया वि य ॥ २०२॥
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