________________
३३४
उत्तराध्ययन सूत्र - पैंतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
_ पापासवों का त्याग तहेव हिंसं अलियं, चोजं अबंभ-सेवणं। इच्छाकामं च लोभं च, संजओ परिवज्जए॥३॥
कठिन शब्दार्थ - हिंसं - हिंसा, अलियं - अलीक-झूठ, चोज्जं - चौर्य, अबंभसेवणं - अब्रह्मचर्य-कुशील सेवन, इच्छाकामं - इच्छा काम, लोभं - लोभ का, परिवज्जएत्याग करे। ___ भावार्थ - हिंसा, अलीक - झूठ, चौर्य - चोरी, अब्रह्मचर्य (मैथुन) सेवन अप्राप्त वस्तु की इच्छा और लोभ इन सभी का संयत पुरुष त्याग कर देवे।
विवेचन - इच्छा काम और लोभ का परिग्रह में समावेश होने से हिंसा आदि पांचों पापासवों का परित्याग करना संयमी के लिये अनिवार्य है क्योंकि इनके द्वारा जीव पाप कर्मों का संचय करता है जिनसे मोक्ष प्राप्ति अशक्य हो जाती है।
निवास-स्थान विवेक मणोहरं चित्तघरं, मल्लधूवेण वासियं। संकवाडं पंडुरुल्लोयं, मणसा वि ण पत्थए॥४॥ इंदियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसम्मि उवस्सए। दुक्कराई णिवारेउं, कामराग-विवडणे॥५॥
कठिन शब्दार्थ - मणोहरं - मनोहर-चित्ताकर्षक, चित्तघरं - चित्रों से युक्त मकान, मल्लधूवेण वासियं - पुष्पमालाओं से और धूप से सुवासित, सकवाडं - कपाट सहित, पंडुरुल्लोयं - श्वेत चंदोवा से सुसज्जित, मणसा वि - मन से भी, ण पत्थए - इच्छा न करे।
इंदियाणि उ - इन्द्रियों का, तारिसम्मि - तादृश-उपरोक्त प्रकार के, उवस्सए - उपाश्रय में, दुक्कराई - दुष्कर, णिवारेउं - निरोध करना-रोकना, कामराग-विवडणे - काम राग को बढ़ाने वाले।
भावार्थ - मनोहर (चित्त को आकर्षित करने वाला), माल्य और अगर-चन्दनादि धूप से वासित (सुगन्धित), कपाट युक्त, श्वेत वस्त्रों से विभूषित या चन्दवा आदि लगा कर सुसज्जित किये हुए, चित्रों से युक्त मकान की साधु मन से भी इच्छा न करे क्योंकि काम-राग को बढ़ाने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org