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________________ लेश्या - विषयानुक्रम - ६. परिणाम द्वार ३१६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - बूरस्स - बूर नामक वनस्पति विशेष का, णवणीयस्स - नवनीत का, सिरीसकुसुमाणं - शिरीष के फूलों का।। ___ भावार्थ - जैसा बूर नामक वस्पति का अथवा नवनीत (मक्खन) का अथवा शिरीष के फूलों का कोमल स्पर्श होता है, उससे भी अनन्तगुण कोमल स्पर्श, तीनों प्रशस्त लेश्याओं (तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या) का होता है। विवेचन - तीन अप्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श करवत, गाय की जीभ और शाक के पत्तों से भी अनंतगुणा कर्कश होता है जबकि तीन प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श बूर, नवनीत और शिरीष के फूलों से भी अनंतगुणा कोमल होता है। ६. परिणाम-द्वार तिविहो व णवविहो वा, सत्तावीसइविहेक्कसिओ वा। दुसओ तेयालो वा, लेसाणं होई परिणामो॥२०॥ कठिन शब्दार्थ - सत्तावीसइविह - सत्ताईस प्रकार का, इक्कसिओ - इक्यासी, दुसओ तेयालो - दो सौ तयालीस, परिणामो - परिणाम। भावार्थ - इन छहों लेश्याओं के तीन अथवा नव अथवा सत्ताईस अथवा इक्यासी अथवा दो सौ तयालीस प्रकार के परिणाम होते हैं। - विवेचन - इस गाथा में लेश्याओं का परिणाम बतलाया गया है। प्रत्येक लेश्या के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन भेद होते हैं। इन तीन भेदों में भी अपने-अपने स्थानों में जब तरतमता का विचार किया जाता है तब यह जघन्य आदि प्रत्येक भी अपने-अपने में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद वाले हो जाते हैं। इस प्रकार तीन को तीन से गुणा करने पर : भेद हो जाते हैं। इन नौ में फिर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद करने पर २७ भेद हो जाते हैं। इन २७ को फिर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तीन से गुणा करने पर ८१ भेद हो जाते हैं और इन ८१ को फिर इन जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट से गुणा करने पर २४३ भेद हो जाते हैं। इसीलिए पण्णवणा सूत्र में कहा है - _ 'तिविहं वा नवविहं वा सत्तावीसइविहं वा इक्कासीइविहं वावि तेयालदुसयविहं वा बहु वा बहुविहं वा परिणामं परिणमइ, एवं कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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