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________________ प्रमादस्थान - वीतरागता का फल .. ... २६७ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 वीतरागता का फल स वीयरागी कय-सव्वकिच्चो, खवेइ णाणावरणं खणेणं। तहेव जं दंसणमावरेइ, जं चंतरायं पकरेइ कम्मं ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - कय-सव्वकिच्चो - कृतसर्व-कृत्य - कृतकृत्य बना हुआ, खवेड़ - क्षय करता है, णाणावरणं - ज्ञानावरणीय कर्म को, खणेणं - क्षण भर में, दंसणं आवरेइ - दर्शन को आवृत करता है, अंतरायं पकरेइ - अंतराय करता है। ___ भावार्थ - कृतसर्वकृत्य - जिसने सभी कार्य कर लिए हैं अर्थात् जिसे अब संसार में कोई कार्य करना शेष नहीं रहता है ऐसा कृतकृत्य, वह वीतराग बना हुआ जीव ज्ञानावरणीय कर्म को और जो दर्शन को ढकता है उस कर्म (दर्शनावरणीय) को और जो दानादि में अन्तराय करता है उस अन्तराय कर्म को एक क्षण में क्षय कर देता है अर्थात् मोहनीय कर्म का क्षय हो जाने के बाद जीव ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय को अन्तर्मुहूर्त में एक साथ क्षय कर डालता है। __ संव्वं तओ जाणइ पासइ य, अमोहणे होइ णिरंतराए। ___ अणासवे झाणसमाहि-जुत्ते, आउक्खए मोक्ख मुवेइ सुद्धे॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - जाणइ - जानता है, पासइ - देखता है, अमोहणे - मोह रहित, णिरंतराए - अंतराय रहित, अणासवे - आस्रव रहित, झाणसमाहि-जुत्ते - ध्यान और समाधि से युक्त, आउक्खए - आयु कर्म के क्षय होते ही, मोक्खं - मोक्ष को, उवेइ - प्राप्त हो जाता है, सुद्धे - शुद्ध। ___भावार्थ - चार घाती - कर्मों के क्षय हो जाने के बाद वह जीव सभी को जानने लग जाता है और देखने लग जाता है तथा मोह - रहित और अन्तराय - रहित हो जाता है, आस्रव रहित और शुक्ल-ध्यान की समाधि से युक्त होकर आयु के क्षय होने पर कर्ममल से शुद्ध होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। .. सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को , जं बाहइ.सययं जंतुमयं। दीहामयं विप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अच्चंतसुही कयत्थो॥११०॥ कठिन शब्दार्थ - तस्स सव्वस्स दुहस्स - उन सभी दुःखों से, मुक्को- मुक्त, बाहइबाधित (पीडित) करता है, सययं - सतत, जंतुमेयं - इस जीव को, दीहामयं - दीर्घ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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