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________________ तपोमार्ग - कर्मों को क्षय करने की विधि २३१ GOOGGOOGGGOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOK पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइंदिओ। अगारवो य णिस्सलो, जीवो होइ अणासवो॥३॥ कठिन शब्दार्थ - पंचसमिओ - पांच समितियों से समित, तिगुत्तो - तीन गुप्तियों से गुप्त, अकसाओ - कषाय रहित, जिइंदिओ - जितेन्द्रिय, अगारवो - गौरव (गर्व) से रहित, णिस्सलो - निःशल्य - शल्य रहित। . भावार्थ - पाँच समिति से युक्त, तीन गुप्ति से युक्त कषाय-रहित, जितेन्द्रिय, तीन गारवरहित और निःशल्य - तीन शल्य-रहित जीव आस्रव-रहित होता है। विवेचन - तप से पूर्वकृत पाप कर्मों का क्षय करने से पहले पूर्वोक्त साधना से अनास्रवआस्रव रहित होना आवश्यक है। , कर्मों को क्षय करने की विधि एएसिं तु विवच्चासे, रागदोस-समज्जियं। खवेइ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण॥४॥ कठिन शब्दार्थ - एएसिं - इन से, विवच्चासे - विपर्यास-विपरीत होने पर। भावार्थ - ये गुण जो ऊपर बतलाये हैं उनसे विपर्यास - विपरीत होने पर (गुणों के अभाव में) राग-द्वेष से सञ्चित किये हुए कर्मों को जिस प्रकार भिक्षु - साधु क्षय कर देता है उस विधि को एकाग्र चित्त होकर सुनो। जहा महातलायस्स, सण्णिरुद्धे जलागमे। उस्सिंचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे॥५॥ एवं तु संजयस्सावि, पावकम्म-णिरासवे। भवकोडीसंचियं कम्मं, तवसा णिज्जरिज्जइ॥६॥ . कठिन शब्दार्थ - महातलायस्स - किसी बड़े तालाब के, सण्णिरुद्ध - रोक देने पर, जलागमे - जल के आने के मार्ग को, उस्सिंचणाए - उलीचने से, तवणाए - तप से, कमेणं - क्रमशः, सोसणा भवे - सूख जाता है, संजयस्सावि - संयमी साधु के भी, पावकम्मणिरासवे - पाप कर्मों के आस्रव को रोक देने पर, भवकोडीसंचियं - भवकोटिसंचितकरोड़ों भवों के संचित, णिज्जरिज्जइ - क्षय हो जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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