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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह २१७ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - जिभिंदियणिग्गहेणं - जिह्वाइन्द्रिय के निग्रह से, रसेसु - रसों में।
भावार्थ - उत्तर - जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में रागद्वेष का निग्रह होता है, तन्निमित्तक कर्मों का बन्ध नहीं होता है और पहले बाँधे हुए कर्मों की निर्जरा हो जाती है।
६६ स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह फासिंदिय-णिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! स्पर्शन इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या लाभ होता है?
फासिंदिय-णिग्गहेणं मंणुण्णामणुण्णेसु फासेसु रागदोस-णिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं च णं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिजरेइ॥६६॥
कठिन शब्दार्थ - फासिंदियणिग्गहेणं - स्पर्शन इन्द्रिय के निग्रह से, फासेसु - स्पर्शों में।
भावार्थ - उत्तर - स्पर्शन इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शों में रागद्वेष का निग्रह होता है, तन्निमित्तक कर्मों का बन्ध नहीं होता और पहले बाँधे हुए कर्मों की निर्जरा हो जाती है।
विवेचन - प्रश्न - इन्द्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर - शब्द, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श इन पांच विषयों में से किसी भी नियत विषय का ज्ञान करने वाली आत्म-चेतना एवं उसके साधन और पौद्गलिक आकार को इन्द्रिय कहते हैं अथवा चमड़ी, नेत्र आदि जिन साधनों से सर्दी, गर्मी, काला, पीला आदि विषयों का ज्ञान होता. है तथा जो अङ्गोपाङ्ग और निर्माण नाम कर्म के उदय से प्राप्त होती है, वह इन्द्रिय कहलाती है। इन्द्रियाँ पांच हैं उनके विषय और विकार इस प्रकार हैं -
१. श्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषय - जीव शब्द, अजीव शब्द और मिश्र शब्द। इसके बारह विकार हैं यथा - ये तीन शुभ, तीन अशुभ। इन छह पर राग और छह पर द्वेष। इस प्रकार बारह विकार हैं।
२. चक्षु इन्द्रिय. के पांच विषय - काला, नीला, लाल, पीला और सफेद। इनके ६० विकार हैं यथा - ५ सचित्त, ५ अचित्त, ५ मिश्र - ये १५ शुभ और १५ अशुभ। इन ३० पर राग और ३० पर द्वेष। इस प्रकार ६० विकार हैं। .
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