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________________ १३६ खलुंकीय - कुशिष्य और गर्गाचार्य 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 पेसिया पलिउंचंति, ते परियंति समंतओ। राय-वेडिं च मण्णंता, करेंति भिउडिं मुहे॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - पेसिया - भेजे जाने पर, पलिउंचंति - अपलाप करते हैं, परियंतिभटकते रहते हैं, समंतओ - चारों ओर, रायवेटिं - राजा की बेगार, मण्णंता -' मानते हुए, भिउडिं - भृकुटि, मुहे - मुख पर। भावार्थ - किसी काम के लिए भेजे हुए अविनीत शिष्य, काम तो नहीं करते और पूछने पर इन्कार कर देते हैं कि 'आपने मुझे उस काम के लिए कहा ही कब था?' वे काम से जी चुरा कर इधर-उधर घूमते रहते हैं। यदि गुरु का कार्य करते हैं, तो उसे राजा की बेगार सरीखा मानते हुए मुख पर भृकुटि करते हैं अर्थात् क्रोधित होकर मुँह पर भृकुटि चढ़ाते हैं। विवेचन - पुराने समय में जब राजाओं का राज्य था तब राजघराने में कोई काम होता . तो राजा अपने किसी पुलिस (कर्मचारी) को भेजता कि पांच मजदूरों को ले आओ तो वह राज कर्मचारी बाजार में से किन्ही पांच मजदूरों को पकड़ कर राजमहल में ले जाता, 'दिन भर उन से काम करवाता और शाम को उनको कुछ भी मजदूरी दिये बिना घर भेज देता। वे मजदूर भी इस. बात को जानते थे कि यहाँ से मजदूरी तो कुछ मिलना है नहीं, इसलिए बिना मन काम करते। जब राज कर्मचारी देखता तो काम करते अन्यथा बैठे रहते। इसलिए किसी से जबरदस्ती काम करवाना अथवा बिना मन काम करवाना वेठ-बेगार कहलाता है। .. वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेण.पोसिया। जायपक्खा जहा हंसा, पक्कमति दिसो दिसिं॥१४॥ • कठिन शब्दार्थ - वाइया - वाचना दी-पढ़ाया, संगहिया - शिक्षा-दीक्षा दे कर अपने पास रखा, भत्तपाणेण - आहार पानी से, पोसिया - पोषण किया, जायपक्खा - पंख आने पर, जहा - जैसे, हंसा - हंस, पक्कमंति - उड़ जाते हैं, दिसोदिसिं - दशों दिशाओं में। भावार्थ - गर्गाचार्य अपने मन में विचार करते हैं कि मैंने इन शिष्यों को पढ़ाया-गुनाया दीक्षित किया और आहार-पानी से पालन पोषण किया किन्तु जिस प्रकार पंखों के.निकल आने पर हंस अपनी इच्छानुसार दिशा विदिशा में उड़ जाते हैं। इसी प्रकार ये मेरे शिष्य भी स्वच्छन्द बन कर अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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