________________
सामाचारी - रात्रि चर्या
१३१ 0000000000000000000000NOOOOOOOOOOOOOOOOOO00000000000000000000000000
पढमं पोरिसी सज्झायं, बीयं झाणं झियायइ। तइयाए णिद्दमोक्खं तु, चउत्थी भुजो वि सज्झायं॥४४॥ कठिन शब्दार्थ - णिद्दमोक्खं - निद्रा को मुक्त करे, भुज्जो - पुनः।
भावार्थ - रात्रिचर्या, पहली पोरिसी में स्वाध्याय करे। दूसरी पोरिसी में ध्यान करे और तीसरी पोरिसी में निद्रा को मुक्त करे अर्थात् आती हुई नींद को रोके नहीं किन्तु उसे खुली छोड़ दें तथा चौथी पोरिसी में पुनः स्वाध्याय करे। .:. पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया।
सज्झायं तु तओ कुजा, अबोहंतो असंजए॥४५॥ कठिन शब्दार्थ - अबोहंतो - नहीं जगाता हुआ, असंजए - असंयत।
भावार्थ - चौथी पोरिसी में काल को प्रतिलेखना कर-देख कर अर्थात् अस्वाध्याय के कारणों को देख कर फिर असंयत पुरुषों को न जगाता हुआ स्वाध्याय करे अर्थात् इतने ऊँचे स्वर से स्वाध्याय न करें जिससे गृहस्थ लोग जग जाय फिर वे सावध कार्य में लग जाय, इससे मुनि को दोष लगता है। अतः स्वाध्याय आदि धीरे स्वर से करना चाहिए।
पोरिसीए चउन्भाए, वंदित्ताण तओ गुरूं। ____पडिक्कमित्तु कालस्स, कालं तु पडिलेहए॥४६॥
भावार्थ - रात्रि की चौथी पोरिसी के चौथे भाग में गुरु महाराज को वन्दना करके फिर प्रतिक्रमण का समय आया हुआ जान कर रात्रि सम्बन्धी काल का प्रतिक्रमण करे।
आगए कायवोस्सग्गे, सव्वदुक्खविमोक्खणे। काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं॥४७॥ कठिन शब्दार्थ - आगए - आने पर, कायवोस्सग्गे - काय व्युत्सर्ग का समय।
भावार्थ - इसके बाद सभी दुःखों से मुक्त कराने वाले कायोत्सर्ग का समय आने पर समस्त दुःखों से छुड़ाने वाला कायोत्सर्ग करे।
राइयं च अइयारं, चिंतिज अणुपुव्वसो। ___णाणम्मि दंसणम्मि य, चरित्तम्मि तवम्मि य॥४८॥
भावार्थ - ज्ञान में, दर्शन में और चारित्र में तथा तप में लगे हुए रात्रि सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org